एक दिन मै एक विद्धाश्रम में गया, वहां देखा उन पिताओं को जिनके भी जीवित पुत्र व पुत्रियाँ हैं। उनको पैदा करने व पालते समय ये कभी नहीं सोचे होंगे की एक दिन जब हम उनकी तरह पालने योग्य होंगे तो वे हमें बहार का रास्ता दिखा देंगे। हम माँ बाप जो बच्चों को पालते समय उनकी खुशी की खातिर अपनी सारी खुशियों को उनपर न्यौछावर कर देते हैं वही बेटे व बेटियाँ अपनी आधुनिक कही जाने वाली जिंदगी में हमें समाहित नहीं कर पाएंगे।
लेकिन कमाल की बात है वे चिल्ड्रेन डे मानते हैं लेकिन आज के ये आधुनिक बेटे जो साल में एक दिन फादर दे मनाने वाले हैं वे उनकी सुधि भी नहीं लेते। वो तो भला हो उस अंग्रेजन का जिसने १९१० में आपने पिता की याद में पहली बार फादर डे मनाया जिसे आज सारी दुनिया मनाती है, हे आधुनिक लोंगो उसने अपने पिता का जन्मदिन फादर डे के रूप में मनाया क्योंकि वे मर चुके थे। तुम उसके पिता के गम में क्यों फादर डे मानते हो, अगर अपने पिता से इतना ही प्यार है तो हर रोज उनकी देखभाल करो उनको अपने साथ रखो तो उनके लिए हर रोज फादर डे होगा।
मै किसी भी त्यौहार का विरोधी नहीं हूँ लेकिन मै उन त्योहारों को नकारता हूँ जो हमारी उज्जवल संस्कृति के खिलाफ हैं, हमारे हर रिश्ते इतने अनमोल है की उनके लिए साल में सिर्फ एक दिन मनाना उन रिस्तो को गाली देने के सामान है। यैसे में माता पिता का रिश्ता तो देव तुल्य रिश्ता है, हम ये कैसे मान सकते हैं की रोज मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करें और घर में माँ बाप को साल में एक दिन याद के रूप में मनावें और ये सोचे की भगवान हमसे प्रसन्न होंगे। जिस तरह हम कण कण में व्याप्त भगवान को रोज मन्दिरों में पूजते है ठीक उसी तरह अपने घर में माँ बाप के रूप में मौजूद भगवान की पूजा करें, ये मदर डे व फादर डे उन अंग्रेजों को ही मनाने दें जिनके लिए ये रिश्ते साल में एक दिन का खेल हैं।
रत्नेश त्रिपाठी
रविवार, 21 जून 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)