किसी भी परिवार,समाज व् देश की प्रगति का वाहक युवा वर्ग ही होता है | ऐसे में यदि वह सही दृष्टि से आगे बढ़ता है तो परिवार, समाज व् देश सबका कल्याण होता है परन्तु जैसे ही युवा अपने सही लक्ष्य से भटकता है तो ये तीनो गर्त में चला जाता है | एक छोटा सा उदहारण वर्त्तमान युवा की मानसिकता का कि...भारतीय समाज में नारी को उच्च स्थान प्राप्त है और हमारा युवा वर्ग क्रमश: 1 -12, 12-40, व् 40 के ऊपर की स्त्री को बेटी बहन और माँ की दृष्टि से देखता था | परन्तु आज की बदली हुयी परिस्थिति में वह हर वर्ग की नारी को भोग की वस्तु मानने लगा है|
रविवार, 24 जुलाई 2011
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
सरकार और उनका मंत्रिमंडल (एक व्यंग) !
सरकार के मंत्रिमंडल बदलाव में पुरानो को खिसकाकर या फेरबदल करके नयों को भी शामिल किया गया है ...ताकि इस देश को लूटने का मौका सबको बराबर मिल सके | और मुझे तो ये भी शक है की जो लूट नहीं पा रहे थे वही मुखबिरी कर रहे थे (फोन टेपिंग का केस उदहारण है) इसी कारण धडाधड मंत्री जेल में जा रहे थे इसी को रोकने के लिए बराबर का मौका दिया गया है ...
शनिवार, 9 जुलाई 2011
वर्त्तमान प्रेम की पराकाष्ठा !
कल रात मैच देखते देखते चैनल बदला तो बिंदास चैनल पे इमोशनल अत्याचार नामक एपिसोड आ रहा था जिसमे प्यार का वर्त्तमान स्वरुप दिखाया जा रहा था और जज के रूप में थे इमरान हाश्मी और महेश भट्ट |
हुआ यूँ की एक प्रेमिका अपने प्यार पे विश्वास न करते हुए अपने प्रेमी की जाँच करवा रही थी और इनके प्रेमी निकले बेवफा और तीन... के साथ प्यार करते हुए पकडे गए उसके बाद हुआ इन प्रेमियों में माँ बहन की गाली का दौर और हाथापाई ...और बाद में समझाने आये देश के सांस्कृतिक प्रदूषण इमरान हाशमी और इस प्रदुषण के पोषक महेश भट्ट इन्होने जब उस लडके से पूछा की तुमने ऐसा क्यूँ किया तो उसने कहा लाईफ में ये चलता है (यानि की उसने उन्ही की कहानी उन्ही को सुना दी) और यही (अपनी प्रेमिका को) कौन सी सही है .....बाद में नंबर आया हासमी जी का तो उन्होंने कहा की दोनों खुश रहें !
ये तो रहा सामान्यतया वर्त्तमान प्रेम का सामान्य स्वरुप ...लेकिन प्रश्न ये उठता है कि अपनी अय्याशी को हम प्रेम का नाम देकर क्या चाहते हैं ? और हमारा यही समाज जो छोटी बच्ची को बेटी के रूप में देखता था अपनी बराबर कि लड़की को बहन अपनी से बड़ी को माँ के रूप में देखता था ....वह समाज आज हर उम्र के औरत को भोग कि वस्तु के रूप में देख रहा है और इसमे साथ देने का आम कहीं न कहीं महिला वर्ग का भी है!
लेकिन जो सबसे बड़ा कारण है वह यह है कि सबसे बड़े दोषी माता पिता हैं जिनमे ने खुद संस्कार बचा है और न ही अपने बच्चों में संस्कार दे पा रहे हैं...
विचार तो और भी हैं इस विषय पर लेकिन सोचने के लिए फिलहाल इतना कि ..क्या हम पढेलिखे लोग प्रेम कि परिभाषा जानते हैं ? और क्या नारी केवल भोग कि वस्तु है ?....
डॉ रत्नेश त्रिपाठी
गुरुवार, 7 जुलाई 2011
खेल की डोपिंग या डोपिंग का खेल !
हमको ये समझ में नहीं आता ही ..दुनिया भर के खेल संघ वालों कि क्या रणनीति है कि ...वे खेल समाप्त होने और पदक बंट जाने के बाद डोपिंग के चार्ज में खिलाडियों से मेडल छीन लेते हैं और उनपर प्रतिबन्ध लगा देते हैं ! अब प्रश्न ये उठता है कि ....
१. उन खिलाडियों का डोप टेस्ट जो खिलाडी प्रतियोगिता में भाग लेने वाले है प्रतियोगिता से पहले क्यूँ नही...ं होता ताकि उनको खेलने से रोका जा सके |
२. डोपिंग के आरोप में छीने गए मेडल को दुसरे नंबर के विजेता को दिया जाता है ..इससे उस विजेता का सम्मान वंचित होता है जिसे वह नहीं पा सकता |
३. कभी कभी कोच कि गलती के कारण खिलाडी फस जाता है ऐसे में उससे पदक छीनना और प्रतिबन्ध लगाना कितना न्यायपूर्ण है ?
वैसे प्रश्न तो बहुत हैं ...लेकिन मुझे लगता है कि मै इन खेल अधिकारीयों इतना बुद्धिमान नहीं हूँ ...अत: इतनी ही विचारनीय बाते सम्मुख रख रहा हूँ कि ....ऐसा क्यूँ ?
डॉ रत्नेश त्रिपाठी
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