जागती आँखों से सपने नहीं देखे जाते,
रोते-बिलखते ये अपने नहीं देखे जाते ,
महँगी गाड़ीयों के लिए रोते बच्चे तो देखे जाते हैं,
विना रोटी के सोने वाले बच्चे नहीं देखे जाते,
जिनसे भीख मांगकर बड़े बनते है नेता,
उनके ठाट-बाट इन आँखों से देखे नहीं जाते,
यही उम्मीद बांधती है हर बार गरीबी,
उनकी टूटती उम्मीद के कमर नहीं देखे जाते.
कुछ लोग अपने बैनर भी लेकर घूमते हैं,
फोटो भी खिचाते हैं गरीबी से खेलते हैं,
पीछे है छुपा क्या हम समझ नहीं पाते,
बस करो की ये दृश्य अब देखे नहीं जाते,
उठाकर ये कलम हमने तो ये लिख दिया,
न जाने हमने भी क्या-क्या लिख दिया
बदलेंगे ये हालत हम समझ नहीं पाते
रोते बिलखते ये अपने नहीं देखे जाते
रत्नेश त्रिपाठी
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5 टिप्पणियां:
YATHARTH BHAWO KO ACHCHHI AWAAJ DI HAI .........ATISUNADAR
बदल गया जमाने का दसतूर,
बदल गया हर जन अौर उसका सूर
मै कैसे करू आपकेा षबदो को आखा से दूर
मुझसे आपके ये आसु देखे नही जाते....
बहुत सुंदर लिख लेते है आप .. भावपूर्ण रचना !!
क्या तारीफ़ करुँ...बस लिखते रहिये यकीनन सार्थक होगा यह लेखन.
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~!~Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!~!~
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Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
जिनसे भीख मांगकर बड़े बनते है नेता,
उनके ठाट-बाट इन आँखों से देखे नहीं जाते,
क्या बात है जी सलाम आप की इस कलम जो. बहुत सुंदर कविता लिखी.
धन्यवाद
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