वह खून कहो किस मतलब का
जिसमे उबाल का नाम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का
aa सके देश के काम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमे जीवन न खानी है
जो परवश होकर बहता है
वह खून नहीं वो पानी है
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून कि कीमत पहचानी थी
जिस दिन सुभाष ने वर्मा में
मांगी उनसे कुर्बानी थी
बोल स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हे करना होगा
तुम बहुत जी चुके हो जग में
लेकिन आगे मरना होगा
आजादी के चरणों में जो
जयमाल चढाई जायेगी
वह सुनो, तुम्हारे शीशों
फूलों से गूंथी जायेगी
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है
आजादी का इतिहास कहीं
काली स्याही लिख पाती है
इसको लिखने के लिए
खून की नदी बहाई जाती है
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आँखों में खून उतर आया
मुख रक्त वर्ण हो दमक उठा
दमकी उसकी रक्तिम काया
आजानु बहु ऊँची करके
वे बोले "रक्त मुझे देना"
इसके बदले में भारत की
आजादी तुम मुझसे लेना
हो गयी सभा में उथल-पुथल
सीने में दिल न समाते थे
स्वर इन्कलाब के नारों के
कोसों तक छाये जाते थे
हम देंगे- देंगे खून
शब्द बस यही सुनाई देते थे
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे
बोले सुभाष "इस तरह नहीं"
बातों से मतलब सस्ता है
लो यह कागज है कौन यहाँ
आकर हस्ताक्षर करता है
इसको भरने वाले जन को
सर्वश्व समर्पण करना है
अपना तन-मन-धन-जीवन
माता को अर्पण करना है
पर यह साधारण पत्र नहीं
आजादी का परवाना है
इसपर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है
वह आगे आये जिसके तन में
भारतीय खून बहता हो
वह आगे आये जो अपने को
हिन्दुस्तानी कहता हो
< वह आगे आये जो इसपर
खूनी हस्ताक्षर देता हो
मै कफ़न बढ़ाता हूँ आये
जो इसको हँसकर लेता है
सारी जानता हुँकार उठी
हम आते हैं "हम आते हैं"
माता के चरणों में यह लो
हम अपना रक्त चढाते हैं
साहस से बढे युवक उस दिन
देखा, बढ़ते ही आते थे
चाकूं- छुरी, कटारियों से
वे अपना रक्त चढाते थे
फिर उसी रक्त की स्याही में
वे अपनी कलम डुबोते थे
आजादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे
उस दिन तारों ने देखा
हिन्दुस्तानी विश्वास नया
जब लिखा महारणवीरों ने
खून से अपना इतिहास नया
आज जब इस देश में भाषा, प्रान्त, धर्म व जाति के नाम पर विद्वेष की राजनीति की जा रही है और इसमे आम जानता भी कहीं न कहीं शामिल हो रही है तो यैसे में गोपाल प्रसाद व्यास की ये पंक्तियाँ बहुत याद आती हैं!
रत्नेश त्रिपाठी
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5 टिप्पणियां:
achchi prastuti
prasangik bhi
thanxxx ... ...
भाई वाह रत्नेश जी क्या बात है, बहुत खूब। आपकी रचना जोश से भरी है। बधाई
रत्नेश त्रिपाठी जी बहुत सुंदर कविता, आज ऎसी कविता ही चाहिये इस समाज को...
धन्यवाद
आभार इसे पढ़वाने का,
BAHOOT HI OZASVI ..... DESH PREM MEIN DOOBI LAJAWAAB RACHNA HAI .... AAJ AISE KAVY KI JAROORAT HAI DO DUBAARA DESH PREM KA JAJBA PAIDA KARE ...
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