आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

प्यार भरे शब्दों से कभी तन्हाई मै भी लिखता था
झूम झूम के गोरी की अंगडाई मै भी लिखता था
पर जबसे मुड़के भारत माँ के सपनों को देखा है
जब से मैंने इसके आँचल में नागों को देखा है
अब याद नहीं रहती तन्हाई गोरी की अंगडाई भी
जबसे यौवन की पीढ़ी को राह भटकते देखा है
अब मै फिर वापस लौटूंगा माँ का कर्ज निभाने को
हे देश के यौवन तुम भी क्या आओगे साथ निभाने को ........रत्नेश

बुधवार, 2 जनवरी 2013

जागो ! अब तो जागो !

अभी इण्डिया (भारत नहीं) के और विश्व के दाद खाज खुजली  टाईप के सारे संघठन जाग उठे हैं और एक सुर में भारत की बुराई कर रहे हैं और भारत को बदनाम कर रहे हैं ............क्यूँ ?  जरा विचार कीजिये :-
१- समाज सुधार का अगर इन्होने वीणा लिया है तो समाज की ऐसी दुर्गति के सीधे जिम्मेदार क्या ये नहीं  हैं? ....इन्हें पहले अपने को दोषी मानना होगा |
२- भारत को बदनाम करके इन्हें तो बहुत कुछ हासिल होगा लेकिन भारत को बदनामी के सिवा क्या मिलेगा ?
३- वर्त्तमान की सरकार ऐसी स्थिति को बढ़ावा क्यूँ दे रही है ...कहीं इनका उद्देश्य भारत की छवि को धूमिल करना तो नहीं है ? और इसी बहाने अपने दुष्कर्मों को छिपाना तो नहीं चाह रही !
४- क्या आपको नहीं लगता है की (आम जनता को छोड़कर) सरकार या विदेशी और सरकारी पैसे पे पलने वाले दाद खाज खुजली टाईप के संस्थाएं इस देश को निम्न स्तर पे देखना चाहती हैं ? ताकि इनकी दुकानदारी चलती रहे |
       मुझे लगता है की हमें इनसे इन्साफ मांगने की बजाये खुद ही सुधार की पहल करनी चाहिए | और उस सुधार की पहली सीढ़ी है परिवार और परिवार के संस्कार |    .........जरा सोचिये ....
डॉ. रत्नेश त्रिपाठी    

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

सच जो हम भूल गए हैं !
भारतीय जीवन दर्शन जिसे संबोधन में हिन्दू धर्म कहा जाता है ..वर्तमान में उसको समझने की बहुत आवश्यकता है..आज हम अपनी नासमझी कहें या जबरजस्ती की बुद्धिमानी .....अपने धर्म से विमुख हो चुके हैं ...कुछ बिंदु जिसपर ध्यान दिया जाना परम आवश्यक है .........
१-   यह देश अपनी मूल संस्कृति से मातृ पूजक है ....इस बात को सिद्ध करने के लिए स्वयम भगवान शंकर अर्धनारीश्वर का रूप अपनाते हैं | शक्ति की पूजा के बाद ही श्रीराम रावण को मार सके | इसलिए बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा खंडित भारतीय समाज में जो दोष आये उसकी देन हमारी सनातन संस्कृति कभी नहीं रही ....इस बात को समझ लेना आवश्यक है |
२- इस देश में नारी के सभी रूपों की पूजा का विधान है ...एक भारतीय (मूल हिन्दू) छोटी बच्ची में अपनी बेटी का दर्शन करता है, अपने समतुल्य को बहन, और अपने से बड़ी स्त्री में माँ के रूप का दर्शन करता है | विश्व की अन्य किसी मानव निर्मित धर्म में ऐसा नहीं देखने को मिलता है , बाकी सभी जगह नारी केवल भोग की वस्तु भर है | हमें ये समझ लेना होगा की अपने धर्म से विमुख होने का ये परिणाम है की संस्कारों के इस देश की ये दुर्गति हो रही है |
३- मूल भारतीय शिक्षा पद्धति हमेशा शोधात्मक रही है जिसमे अपनी बुद्धि के अनुसार व्यक्ति समाज का अंग होता था | लेकिन हम आज केवल जबरजस्ती की पढाई जिसमे पैसा कमाना ही मूल उद्देश्य है ...ग्रहण कर रहे हैं ....यहाँ तक की हमारे वर्तमान शासक नैतिक शिक्षा की जगह यौन शिक्षा दे रहे हैं | हम अपने धर्म से विमुख है इसलिए इसे स्वीकार कर रहे हैं |
४- विदेशी संस्कृतियों के जाल में फंसकर हम अपने मूल हिन्दू धर्म में ही बुराईयाँ ढूंढ़ रहे हैं ....जबकि हमारा काम अपनी हिन्दू संस्कृति में आये विदेशी प्रभाव को दूर करना है जिससे की हम पुन: विश्व के शिक्षक बन सकें |
५- हमें यह समझ लेना होगा की यह राष्ट्र  किसी विदेशी सोच और संस्कृति पर आधारित  राष्ट्र नहीं है ....ये हमारा राष्ट्र है ...हमें इसे खुद सुधारना होगा ...हमें किसी विदेशी मानव निर्मित धोखेबाज और कुकर्मी संस्कृतियों की सीख नहीं चाहिए..........................शुरुआत खुद से करिए ...पुन: हिन्दू बनिए ....सारा विश्व निर्मल हो जायेगा ...और हमारा राष्ट्र पुन: विदेशी मानसिकता से मुक्त होगा ...................
.डॉ. रत्नेश त्रिपाठी 

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

दिल्ली की शर्मनाक घटना के बाद मै देश भर के सभी तथाकथित बुद्धिजीविओं के साथ साथ आम लोगों के आक्रोश और उनके द्वारा जो नए नए उपाय (जैसे लाल मिर्च का पाउडर या स्प्रे, प्रशिक्षण आदि) खोजे जा रहे हैं उसे पढ़ रहा हूँ और देख रहा हूँ ...ये सब तात्कालिक उपाय भी समाज की गिरती दशा ही बयान करते हैं ....
क्या हम इतना गिर गए हैं की महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महिलाओं पर ही डालकर हम समाज को सुरखित कर सकते हैं ..नहीं ....
मै सिर्फ इतना ही कहाँ चाहता हूँ की पहले अपने परिवार में संस्कार भरिये .....ये संस्कारों का देश है ...और जब जब ये संस्कार धूमिल हुए हैं तब तब भारत संकट में आया है .....
सभी समस्याओं का एक ही निदान है ...खुद को और अपने परिवार को संस्कारित करिए ................

डॉ. रत्नेश त्रिपाठी

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

आतंकवाद (इण्डिया में) एक बेहतर भविष्य !
इंडिया में (भारत में नहीं) आतंकवादी नाम के पोस्ट की बड़ी इज्जत है .....इंडिया की सरकार एक तो दामाद की तरह रखती है दूसरे -नेता उनकी फांसी नहीं होने देते (जबतक खुद नहीं मर जाते)...उनके खाने पीने का पूरा ध्यान रखा जाता है उनके बिस्तर पे ही उनको मनचाहा खाना मिल जाता है और तो और बीमार नहीं होने पर भी रोज डाक्टर उनका चेकअप करते हैं.......अब ऐसी व्यवस्था या तो देश के राष्ट्रपति को मिलती होगी या प्रधानमन्त्री को ..........
कभी कभी सोचता हूँ देशभक्ति की कीमत भीख में मिले ६०० रुपये सही हैं या देशद्रोह में मिलने वाला लक्जरी जीवन जिसकी कीमत करोडो में है...

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

मेरी माँ !

माँ आज ब्रत है
ब्रत है वो मेरे लिए
उसे ये याद नही कि उसको दवा खानी है
उसे याद है जीवितपुत्रिका ब्रत !
उसे इस बात कि परवाह नही कि
उसकी बूढी हड्डियो को भोजन चाहिए
उसे परवाह है जवान बेटे के स्वास्थ्य की
उसे याद है घर के सारे काम
लेकिन भूल गयी अपने को
क्यूंकि वो माँ है ! माँ
जिसका कोई मोल नही ............रत्नेश    

सोमवार, 17 सितंबर 2012

एक आम आदमी !
सरकार -  वर्तमान सरकार अपने तो देश को लूट रही है ..लेकिन आम आदमी का जीवन महगाई के मार से त्रस्त कर रही है .......मेरी नजर में ये सबसे बड़े देश द्रोही हैं ...
विपक्ष - वर्तमान विपक्ष नपुंशकता की सीमा पार कर चूका है और बिल्ली की तरह छींका टूटने का इन्तजार कर रहा है ..........ये देश द्रोहियों का अप्रत्यक्ष्य रूप से साथ दे रहा है ..
सरकार के सहयोगी -  ये उस लोमड़ी की तरह हैं जो शिकार का जूठन न मिलने तक शेर के खिलाफ षडयंत्र करती है और जैसे ही शेर शिकार की जूठन छोड़ता है लोमड़ियाँ वापस खुश हो जाती हैं .........
तथाकथित सामाजिक कार्यकर्त्ता -     बिना नाम लिए इतना ही कहूँगा की इन्होने भी आम जनता का खूब फायदा उठाया और अब ये भी मलाई खाने की फिराक में हैं ..........
आम आदमी - इसके पास सोचने और सहने के आलावा कोई रास्ता नहीं है ....जो रास्ता है उसे वह खुद नहीं समझता और इसी नासमझी का फायदा देशद्रोही नेता और मलाईलोलुप तथाकथित सामाजिक कार्यकर्त्ता उठा लेते हैं ..........
इसलिए ये ध्यान रखें की ...हम सुधरेंगे जग सुधरेगा ......
वन्देमातरम !