आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

रविवार, 29 मार्च 2009

माँ की वंदना

यूँ तो माँ के विषय में लिखने के लिए एक ही जनम काफी नहीं है, लेकिन अगर कुछ लिखने को कहा जाये तो अभिव्यक्ति के लिए शब्द ही नहीं मिलते हाँ कुछ पंक्तियों से जरुर माँ के बारे में वंदना स्वरूप शब्द का वर्णन किया जा सकता है, इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियाँ निम्न हैं ,

१. बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान हुआ,
उठाया गोंद में माँ ने तो आसमान छुआ,
२. जब भी कस्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ कराती हुई ख्वाब में आ जाती है.
३. घर के झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उघडते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा .
४. बदन से तेरे आती है मुझे यै माँ वही खुशबू,
जो इक पूजा के दीपक में पिघलते घी से आती है.
५. भीड़ भरा चौरस्ता हूँ मै,
घर की एक डगर है माँ.
रहा उम्र भर एक सफ़र में,
जब भी लौटा घर है माँ.
मुझको छोड़ अकेला मेरे,
बच्चे चले गए जब से,
तेरी याद बहुत आती है,
आया तुझे छोड़कर माँ.
ये सभी पंक्तियाँ किसी न किसी ने माँ को याद करते हुए ही लिखी होगी, मतलब इससे नहीं की वो किस जाति या धर्म के हैं! बात ये है की उन सभी ने माँ को इश्वर के रूप में देखा होगा, पद्म भूषण नीरज जी ने माँ के बारे में लिखा है कि,

जिसमे खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र,
माँ कि गोंदी से नहीं कोई तीर्थ पवित्र.

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

भारतीय नववर्ष २०६६,

सभी ब्लागरवासियों को भारतीय नववर्ष २०६६, कलियुगाब्द ५०११ व नवरात्रि की अनुपम बेला पर ढेर सारी शुभकामनाएं,