सभी ब्लागर वासियों को इस पावन नवरात्रि की ढेर सारी शुभकामनाएं, माँ जगदम्बे की कृपा हम सभी पर बनी रहे और हम एक भारत की तरह अपनी बातों व देश की समस्याओं की चर्चा ऐसे ही करते रहें तथा एक ऐसे समाज की रचना में योगदान करें जो हमारे और हमारे देश की उन्नति का वाहक बने,
इसी कामना के साथ जय माता दी
रत्नेश त्रिपाठी
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
वे जो अपने हैं !
जागती आँखों से सपने नहीं देखे जाते,
रोते-बिलखते ये अपने नहीं देखे जाते ,
महँगी गाड़ीयों के लिए रोते बच्चे तो देखे जाते हैं,
विना रोटी के सोने वाले बच्चे नहीं देखे जाते,
जिनसे भीख मांगकर बड़े बनते है नेता,
उनके ठाट-बाट इन आँखों से देखे नहीं जाते,
यही उम्मीद बांधती है हर बार गरीबी,
उनकी टूटती उम्मीद के कमर नहीं देखे जाते.
कुछ लोग अपने बैनर भी लेकर घूमते हैं,
फोटो भी खिचाते हैं गरीबी से खेलते हैं,
पीछे है छुपा क्या हम समझ नहीं पाते,
बस करो की ये दृश्य अब देखे नहीं जाते,
उठाकर ये कलम हमने तो ये लिख दिया,
न जाने हमने भी क्या-क्या लिख दिया
बदलेंगे ये हालत हम समझ नहीं पाते
रोते बिलखते ये अपने नहीं देखे जाते
रत्नेश त्रिपाठी
रोते-बिलखते ये अपने नहीं देखे जाते ,
महँगी गाड़ीयों के लिए रोते बच्चे तो देखे जाते हैं,
विना रोटी के सोने वाले बच्चे नहीं देखे जाते,
जिनसे भीख मांगकर बड़े बनते है नेता,
उनके ठाट-बाट इन आँखों से देखे नहीं जाते,
यही उम्मीद बांधती है हर बार गरीबी,
उनकी टूटती उम्मीद के कमर नहीं देखे जाते.
कुछ लोग अपने बैनर भी लेकर घूमते हैं,
फोटो भी खिचाते हैं गरीबी से खेलते हैं,
पीछे है छुपा क्या हम समझ नहीं पाते,
बस करो की ये दृश्य अब देखे नहीं जाते,
उठाकर ये कलम हमने तो ये लिख दिया,
न जाने हमने भी क्या-क्या लिख दिया
बदलेंगे ये हालत हम समझ नहीं पाते
रोते बिलखते ये अपने नहीं देखे जाते
रत्नेश त्रिपाठी
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