आइये जानते है गुरूजी के विषय में :-
जिन्हें
हम सब प्रेम से गुरूजी कहकर पुकारते हैं ऐसे महान ओजवान और राष्ट्रवादी
व्यक्तित्व का जन्म 19 फरवरी, 1906 को नागपुर में अपने मामा के निवास स्थान
पर हुआ था | गुरु जी के पिता श्री सदाशिव राव गोलवलकर जी प्रारम्भ में
डाक-तार विभाग में कार्यरत थे परन्तु बाद में सन् 1908 में उनकी नियुक्ति
शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर हो गयी गुरु जी बचपन से ही मेधावी छात्र
थे उन्होंने अपनी समस्त परीक्षाएं सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं
गुरूजी अपनी कक्षा मे हर प्रश्न का उत्तर देते थे अतः उन पर उत्तर देने
के लिए तब तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया जब तक कि कक्षा का कोई अन्य
छात्र उन प्रश्नों का उत्तर न दे दे | उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर
उनका संपर्क राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से हुआ तदुपरांत गुरूजी नियमित रूप
से शाखा जाने लगे | जब डा. हेडगेवार काशी आये तो हेडगेवार जी के
व्यक्तित्व से प्रभावित हो गुरु जी का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो
गया | गुरूजी उसके बाद कुछ समय काशी में रहने के बाद वे नागपुर कानून की
परीक्षा देने के लिए आये उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की |
इस
दौरान गुरूजी का सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से हुआ और वह बंगाल के सारगाछी
आश्रम चले गए और स्वामी अखण्डानंद जी से दीक्षा ली और तत्पश्चात पूरी शक्ति
से संघ कार्य में जुट गये | पूरे देश में उनका प्रवास होने लग गया उनकी
योग्यता को देखकर डा. हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व
दिया था 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरूजी
सरसंघचालक बने तो उन्होंने संघ कार्य को गति प्रदान करने के लिए अपनी पूरी
शक्ति लगा दी | गुरूजी ने संघ को अखिल भारतीय सुदृढ़ अनुशासित संगठन का
रूप दिया पूरे देश में संघ कार्य बढ़ने लगा |
जब 1947 में
देश विभाजन हुआ तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवकों की संख्या
आबादी के अनुसार नाम मात्र थी फिर भी भारत विभाजन के समय संघ के स्वयं
सेवकों ने गुरु जी के नेतत्त्व में पकिस्तान के अन्दर जाकर हिन्दू भाई
बहनों को वहां से लाने में अपना सहयोग दिया जिसमे ना जाने कितने स्वयं
सेवकों ने अपने प्राणों का बलिदान कर माँ बहिनों की इज्जत और जान माल की
रक्षा की | सिख , पंजाबी , हिन्दू सभी के साथ मिलकर स्वयं सेवक दिन रात
शरणार्थी कैम्पों की रक्षा हेतु पहरा दिया करते थे |
1948
में गंधासुर गांजी की हत्या का आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया और
गुरूजी को भी जेल में डाल दिया गया | आक्षेप को भी श्री गुरूजी ने झेला
लेकिन वे विचलित नहीं हुए ना ही कभी हार मानी |
गुरूजी का
अध्ययन व चिंतन इतना सर्वश्रेष्ठ था कि वे देश भर के युवाओं के लिए ही
प्रेरक पुंज नहीं बने अपितु पूरे राष्ट्र के प्रेरक पुंज व दिशा निर्देशक
हो गये थे |
वे युवाओं को ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करते रहते
थे वे विदेशों में ज्ञान प्राप्त करने वाले युवाओं से कहा करते थे कि
युवकों को विदेशों में वह ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिसका स्वदेश में
विकास नही हुआ है वह ज्ञान सम्पादन कर उन्हें शीघ्र स्वदेश लौट आना चाहिए |
वे कहा करते थे कि युवा शक्ति अपनी क्षमता का एक एक क्षण दांव पर लगाती
हैं | अतः मैं आग्रह करता हूं कि स्वयं प्रसिध्दि संपत्ति एवं अधिकार की
अभिलाषा देश की वेदी पर न्योछावर कर दें | वे युवाओं से अपनी पढ़ाई की ओर
ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा करते थे वे युवाओं को विदेशी संस्कृति का
अंधानुकरण न करने के लिए भी प्रेरित करते थे | श्री गुरूजी को प्रारम्भ से
ही आध्यात्मिक स्वभाव होने के कारण सन्तों के श्री चरणों में बैठना,
ध्यान लगाना, प्रभु स्मरण करना ,संस्कृत व अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करने
में उनकी गहरी रूचि थी |
गुरूजी धर्मग्रन्थों एवं विराट
हिन्दूु दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम
प्रस्तावित किया गया था जिसे उन्होंने राष्ट्र सेवा और संघ के दायित्व की
वजह से सहर्ष अस्वीकार कर दिया यदि वो चाहते तो शंकराचार्य बन कर पूजे जा
सकते थे किन्तु उन्होंने राष्ट्र और धर्म सेवा दोनों के लिए संघ का ही
मार्ग उपयुक्त माना |
श्री गुरूजी को अनेकों आध्यात्मिक
विभूतियों का प्यार व सानिघ्य प्राप्त था | संघ कार्य करते हुए वे निरंतर
राष्ट्रचिंतन किया करते थे चाहे आधी अधूरी स्वतंत्रता के बाद कश्मीर विलय
का मसला हो या फिर अन्य कोई महत्वपूर्ण प्रकरण श्री गुरूजी को राष्ट्रीय
सीमाओं की सुरक्षा की भारी चिंता लगी रहती थी गुरु जी मानते थे भारत
कर्मभूमि, धर्मभूमि और पुण्यभूमि है यहां का जीवन विश्व के लिए आदर्श है |
भारत राज्य नहीं राष्ट्र है राष्ट्र बनाया नहीं गया अपितु यह तो सनातन
राष्ट्र ही है |
श्री गुरूजी की आध्यात्मिक शक्ति इतनी
प्रबल थी कि ध्यान इत्यादि के माध्यम से उन्हें आने वाले संकटों का आभास
भी हो जाता था | गुरूजी निरंतर राष्ट्र श्रध्दा के प्रतीकों का मान, रक्षण
करते रहे वे सदैव देशहित में स्वदेशी चेतना स्वदेशी व्रत स्वदेशी जीवन
पध्दति, भारतीय वेशभूषा तथा सुसंस्कार की भावना का समाज के समक्ष
प्रकटीकरण करते रहे |
गुरूजी सदैव अंग्रेजी तिथि के स्थान पर हिंदी तिथि के प्रयोग को स्वदेशीकरण का आवश्यक अंग मानते थे |
गौरक्षा के प्रति चिंतित व क्रियाशील रहते थे गुरूजी की प्रेरणा से ही गोरक्षा का आंदोलन संघ ने प्रारम्भ किया था
विश्व
भर के हिंदुओं को संगठित करने के उददेश्य से विश्व हिंदू परिषद की
स्थापना की गयी तथा विद्या भारती के नेतृत्व में अनेकानेक शिक्षण
संस्थाओं का श्री गणेश हुआ |
उनकी प्रेरणा से सम्भवतः
सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसा ही कोई क्षेत्र छूटा हो जहां संघ के
आनुषांगिक संगठनों का प्रादुर्भाव न हुआ हो | गुरूजी अपने उदबोधनों में
प्रायः यह कहा करते थे कि यदि देश के मात्र तीन प्रतिशत लोग भी समर्पित
होकर देश की सेवा करें तो देश की बहुत सी समस्यायें स्वतः समाप्त हो
जायेंगी | श्री गुरूजी ने लगभग 33 वर्षों तक संघ कार्य किया और पूरे देश
भर में फैला दिया उनकी ख्याति पूरे देश में ही नहीं अपितु विश्व में भी
फैल चुकी थी |
श्री गुरू जी ने अपनी पुस्तक ''बंच ऑफ थॉट्स'', (अध्याय XVI, आन्तरिक खतरा-१. मुसलमान, पृ. १७७-१८७, १९६६) में कहा :-
१. मुस्लिम मानसिकता-''क्या
(पाकिस्तान बनने के बाद) जो मुसलमान भारत में रह गए हैं, उनकी मानसिकता
तनिक भी बदल गई है ? क्या उनकी पुरानी शत्रुता और हत्या करने की मनस्थिति
जिसके फलस्वरूप १९४६-५७ में व्यापक मात्रा में दंगे, लूट, आगजनी, बलात्कार
और विभिन्न प्रकार की लम्पटताएं अभूतपूव्र स्तर पर हुईं, अब समाप्त हो गई ?
ऐसा भ्रम से भी विश्वास कर लेना कि पाकिस्तान बनने के बाद वे रातोंरात
राष्ट्र भक्त हो गए हैं, आत्मघाती होगी। इसके विपरीत पाकिस्तान बन जाने के
कारण मुस्लिम खतरा सैंकड़ों गुना और बढ़ गया है क्योंकि पाकिस्तान हमारे देश
पर समस्त भावी आक्रामक कार्यवाहियों के लिए कए स्थायी आधार बन गया है।''
(पृ. १७८)
२. भारीय मुसलमानों की दोहरी आक्रामक नीतियाँ-''उनकी
आक्रामक रणनीति सदैव दोहरी रही है : पहली 'सीधा आक्रमण'। स्वतंत्रता
पूर्व जिन्ना नपे इसे 'डाईरेक्ट एक्शन' या 'सीधी कार्यवाही' कहा जिसके
पहले झटके के फलस्वरूप उन्हें पाकिस्तन मिला।'' (पृ. १७८)..... ''उनके
आक्रमण का दूसरा मोहरा हमारे देश के संवदेशनील क्षेत्रों में तेजी से अपनी
जनसंखया बढ़ाना है। कश्मीर के बाद इनका दूसा निशाना आसाम है। वे पिछले
अनेक वर्षों से नियोजित ढंग से आसाम, त्रिपुरा ओर शेष बंगाल में तेजी से
घुस पैंठ कर रहे हैं। ऐसा, हमारी तरह, कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि
क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में अकाल का प्रकोप है, इसलिए लोग वहाँ से आसाम
और पश्चिमी बंगाल में आ रहे हैं। पाकिस्तानी मुसलमान तो पिछले पन्द्रह
वर्षों (१९५१) से आसाम में घुस पैठ कर रहे हैं। क्या इसका यह अर्थ है कि
पिछले पन्देह वर्षों से अकाल उन्हें धकेतला रहा है ? '' (पृ. १७९)
३. फिर १९४६-५७ जैसी स्थिति-''इस
बात के स्पष्ट लक्षण हैं कि भारत में १९४६-४७ जैसी विस्फोटक स्थिति फिर
तेजी से पनप रही हे और पता नहीं विस्फोट कब हो जाए। दिल्ली से लेकर रामपुर
औरल खनऊ तक मुसिलम खतरनाक षड्यंत्रों जैसे हथियारों की जमाखोरी और अपने
लोगों को लामबंद करने में व्यस्त हैं और सम्भवतः वे अन्दर से आक्रमण करने
की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब पाकिस्तान हमारे देश पर सशस्त्र हमला करने का
फैसला करें।'' (पृ. १८१)
४. अनेक भारतीय मुसलमान पाकिस्तान के सम्पर्क में-''सार
की बात यह है कि व्यवहार में प्रत्येक जगह एसे मुसलमान हैं जो कि
पाकिस्तान के साथ ट्रान्समिटर के द्वारा लगातार सम्पर्क में रहते हैं। ऐसा
करते हुए वे न केवल एक सामान्य नागरिक के अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं
बल्कि कुछ विशेष रिययतें और कुछ विशेष अधिकार भी क्योंकि वे 'अल्पसंखयक'
हैं। हमारा गुप्तचर विभाग ऐसे लोगों, जो हमारे देश के अस्तित्व को नीचा
दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, की अपेक्षा राष्ट्र भक्त लागों के बारे में
ज्यादा सतर्क प्रतीत होते हैं।'' (पृ. १८५)
५. वास्तविकता का सामना करो-''मुसलमान,
आज भी चाहे किसी ऊँचे सरकारी पद पर हों या बाहर हों, राष्ट्रविरोधी
गोष्ठियों में खुल्लम खुल्ला भाग लेते हैं उनके भाषणों में विरोध और अवज्ञा
सुस्पष्ट दिखाई देती है। एक केन्द्रीय मंत्री ने एक ऐसी ही गोष्ठी के मंच
से बोलते हुएधमकी दी जब तक कि मुसलमानों के हितों को सुरक्षित नहीं रखा
गया यहाँ भी स्पेन जैसी स्थिति दुहराई जाएगी जिसका अर्थ है कि वे सशस्त्र
क्रांति के लिए उठ खड़े होंगे | अब हम और रोना-धोना बंद करें जब तक कि
बहुत देर न हो जाए; और देश की सुरक्षा और अखंडता को सर्वोत्तम प्राथमिकता
देते हुए इस लम्बी आत्मघाती चली आई मानसिकता का सामना करने के लिए तैयार
हो जाओ।'' (पृ. १८६-१८७)
1970 में वे कैंसर से पीड़ित हो गये
शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ पर पूरी तरह नहीं , इसके बाद भी वे
प्रवास करते रहे अपने समस्त कार्यों का सम्पादन करते हुएश्री गुरूजी ने 5
जून, 1973 को रात्रि में शरीर छोड़ दिया और माँ भारती की पुण्य भूमि के
आँचल में पंचतत्व में विलीन हो गए ||
गुरु जी के
विषय में जो लोग निरंतर उल जुलूल प्रलाप कर रहे है , गुरु जी को अपशब्द कह
रहे है वैसे तो वो इस काबिल नहीं की उनको उनकी बात का जबाब भी दिया जाए
किन्तु मैं " जीत शर्मा " मानव " उतना सरल सहज नहीं हूँ इसलिए गुरु जी का
अपमान नहीं देख सकता | मेरे पास समय भले ही कम हो लेकिन गुरु जी के विषय
में बताने को अभी भी बहुत कुछ बाकी है ||
श्री गुरु
जी के पावन व्यक्तित्व को मेरा कोटि कोटि वंदन है , बारम्बार नमन है और
गर्व है की जिस संघ रुपी ब्रक्ष को उन्होंने सीच कर आसमान के समक्ष ला खड़ा
किया मैं उसी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक शाख का सिपाही हूँ ||
___________________________________________ जीत शर्मा " मानव "