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सोमवार, 18 जनवरी 2010

शिर्डी, त्रयम्बकेश्वर व महाकालेश्वर की पावन यात्रा का वृतांत

दिल्ली की जानलेवा ठण्ड में बने इस कार्यक्रम ने जीवन को नए अनुभवों से अवगत कराया, वैसे तो तीर्थयात्राएँ इसी उम्र में बहुत कर ली है, लेकिन इस तीर्थयात्रा का अपना अलग ही महत्व समझ में आया.
11 जनवरी को हम कपकपाती ठण्ड से निकलकर टीशर्ट में गर्मी का अनुभव करते हुए शिर्डी साईं बाबा के दरबार में पहुचे, इस तीर्थ का एक सबसे बड़ा अनुभव यह हुआ कि अगर आप किसी बिशेष अवसर पर वहाँ नहीं गए हैं तो आप को कोई भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा, ना ठगे जाने का डर नहीं असुरछा की भावना बाबा का दर्शन करके मन में एक अजीब सा उत्साह का अनुभव हुआ, हम पढ़े लिखे लोगों की यह बहुत बड़ी कमी है की हम हर जगह तर्क की कसौटी पर चीजों को तौलते हैं लेकिन यदि मन को इन तर्कों से अलग करके ध्यान लगाया जाये तो वाकई एक अलग सा उत्साह हमें भक्तिरस से सरोबार कर देता है, जिसका अनुभव हमें शिर्डी साईं बाबा के दरबार में हुआ,
रात वहीँ बिताकर हम अगले दिन शिगनापुर पहुचे जो शिर्डी से लगभग 80 कि. मी दूर है. यह वही जगह है जहाँ घरों में ताले नहीं लगाते , लोग झूठ नहीं बोलते , यहाँ पर प्रसिद्ध शनि भगवान का मंदिर है, जिनके दर्शन कि एक अलग ही पहचान है, वह यह कि उनका दर्शन केवल पूरी तरह नंगे होकर भीगे शारीर के साथ ही करना होता है, महिलाओं को इसकी बाध्यता नहीं है किन्तु पुरुषों को मात्र एक बिना सिले हुए कपडे
को लपेट कर ही दर्शन करने कि अनुमति दी जाती है. शनि भगवान का दर्शन कर हमने उत्तम जीवन कि कामना की,
लेकिन हमें तब आश्चर्य हुआ जब वहाँ के लोगों को प्रसड के नाम पर यात्रियों को लूटते हुए देखा, आज के समय में ताले न लगाने वाले लोग लालच की दलदल में किस तरह फस चुके हैं इसका बड़ा ही अजीब उदहारण देखने को मिला. लेकिन भगवान के दर्शन अच्छे से हुए इसी ख़ुशी में हम वहाँ से नासिक पहुंचे.

नासिक में हम मुक्तिधाम में रुके यह ठहरने कि एक उत्तम जगह है, जहाँ आपको मंदिर के शुद्ध वातावरण के साथ साथ ठगे जाने का भय नहीं रहता. अगले दिन हम नासिक से त्रयम्बकेश्वर गए जो नासिक से ८० कि.मी. की दुरी पर है भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महत्वपूर्ण त्रयम्बकेश्वर भोलेनाथ के दर्शन पाकर हम कृतार्थ हुए. तत्पश्चात हम नासिक पहुंचे, अपने यात्रा का अगला पड़ाव था, उज्जैन,

ठीक सूर्यग्रहण के दिन हम भोपाल से ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए मोक्ष के समय छिप्रा नदी के तट पर पहुंचे. वहाँ स्नान करने के लिए लोगों का मेला लगा था. और नारी पुरुष पर संवाद करने वालों के लिए वह दृश्य किसी शिक्षा ग्रहण करने से कम नहीं था. वहाँ सभी भक्तिरस में डूबे स्नान कर रहे थे. क्या नारी क्या पुरुष सभी सबके अन्दर केवल और केवल भक्ति थी और वास्तव में यही हमारे हिन्दू सनातन धर्म की विशेषता है, कि जहाँ हमने भगवान को पूजा वहाँ हमें आनंद मिला और जहाँ हमने वासना कि पूजा कि वहाँ हमें दुःख व कष्ट मिला. छिप्रा नदी के पावन जल से स्नान करने के बाद हमने महाकाल के दर्शन किये. दर्शन करते समय ऐसा लग रहा था कि हम किसी अलग ही दुनिया में आ गए हैं, इस पावन मौके पर छिप्रा नदी में स्नान और महाकाल के दर्शन ने हमें खुद को गौरवान्वित करते हुए भावविभोर कर दिया जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता.
और इस तीर्थयात्रा का समापन राजा भोज के बनाये हुए भोजपुर के शिव मंदिर के दर्शन से हुआ. भोपाल से ३० कि.मी. कि दुरी पर स्थित इस शिव मंदिर एक बड़ी ही रोचक कथा है, ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने का कम एक ही रात में पूरा होना था जो संभव नहीं हो सका, पुनः इसे पूरा करने का बहुत ही प्रयास हुआ किन्तु विफल रहा, भगवान भोलेनाथ के इस विशालकाय शिवलिंग के दर्शन के साथ ही इस पावन तीर्थयात्रा की समाप्ति हुयी.
ॐ नमः शिवाय
रत्नेश त्रिपाठी

शनिवार, 2 जनवरी 2010

उस दिन मेरे गीतों का त्यौहार मनाया जायेगा

जिस दिन वेद मन्त्रों से धरती को सजाया जायेगा
उस दिन मेरे गीतों का त्यौहार मनाया जायेगा

खेतों में सोना उपजेगा, झूमेगी डाली -डाली
वीरानों कि कोख से पैदा जिस दिन होगी हरियाली
विधवाओं के सूने मस्तक पर फहरेगी जब लाली,
निर्धन कि कुटिया में जिस दिन दीप जलाया जायेगा
उस दिन.......

खलिहानों कि खाली झोली, भर जाएगी मेहनत से
इंसानों कि मज़बूरी जब, टकराएगी दौलत से ,
सदियों का मासूम लड़कपन जाग उठेगा गफलत से,
जिस दिन भूखे बच्चों को भूखा न सुलाया जायेगा .
उस दिन ...............

जिस दिन काले बाजारों में, रिश्वतखोर नहीं होंगे ,
जिस दिन मदिरा के सौदाई तन के चोर नहीं होंगे,
जिस दिन सच कहने वालों के दिल कमजोर नहीं होंगे
जिस दिन झूठी रश्मों को नीलम कराया जायेगा .
उस दिन ..............

यह गीत हमारी शाखा के हैं जिसे हम जनवरी भर बच्चों के साथ गायेंगे और इस देश कि उन्नति के बारे में खेल खेल में चर्चा करेंगे. मुझे लगा कि हम सब को इसे गाना चाहिए, और केवल गानाही क्यों इसके भों को समझकर अपने प्रयास भी करने चाहिए, इस कारण से मने इसे प्रस्तुत किया.
रत्नेश त्रिपाठी