आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

गुरुवार, 24 जून 2010

चलो जन्मदिन कुछ ऐसे मनाया जाये !

सभी ब्लागर वाशियों को सादर नमस्कार !
जब सभी तरह के विचार हम आपस में बांटते है तो ये जरुरी लगा कि मेरे इस जन्मदिन कि ख़ुशी भी मै आप सबके साथ बांटू | अपनी इस रचना के साथ !

चलो जन्मदिन कुछ ऐसे मनाया जाये
किसी रोते को हँसाया जाये
किसी के गम को भुलाया जाये
काम मुस्किल है नामुमकिन नहीं है साथी
चलो आज किसी अपाहिज कि बने बैसाखी
फिर तो आज दिन भी अनमोल है तेरे जीवन का
चलो आज नई सुबह में रौशनी फैलाया जाये | कि चलो आज जन्मदिन .......

ना जाने कितने रोज गिरते हैं मजबूरियों से
चलो उनमे से कुछ को उठाया जाये
उनके दर्द उनके गम उनके दुख को समझें
प्यार दे के उनके दर्द को बांटा जाये | कि चलो जन्मदिन ............

आज जब लोग मतलब के लिए मिलते हैं
आज जब लोग दिखावे के लिए खिलते हैं
ऐसे में उनको भी कोई राह दिखाया जाये
कि चलो आज सच में जन्मदिन मनाया जाये | कि चलो आज जन्मदिन .......

रत्नेश त्रिपाठी

सोमवार, 14 जून 2010

कोई लगता दिल को प्यारा !

कोई लगता दिल को प्यारा
लेकिन मै बोल ना पाता हूँ
डरता हूँ वह सुन्दर है बहुत
जाने क्या भाव लाये मन में
लेकिन उसको जब देखता हूँ
खुद को मै भूल सा जाता हूँ | (कोई लगता दिल को प्यारा .........


मै देखता हूँ हर रोज उसे
लेकिन कुछ रोज ही होगा ये
जाने फिर कब मै उसे देखूं
यह सोच के मै घबराता हूँ | (कोई लगता दिल को प्यारा ..........


है मुझमे नहीं तन की सुन्दरता
जिसको ये जहाँ बस पूजता है
लेकिन मन की सुन्दरता है
फिर भी मै बोल ना पाता हूँ |(कोई लगता दिल को प्यारा ..........


है प्यार क्या, चाहत है क्या ?
इसकी मुझको कोई चाह नहीं
क्यों लोग पूजा की पद्धति को
कहते प्यार! मै समझ ना पाता हूँ | (कोई लगता दिल को प्यारा ..........

रत्नेश त्रिपाठी

शुक्रवार, 11 जून 2010

रोचक हरिद्वार यात्रा और माँ गंगा की आरती !

ये सत्य है की जब भक्त सच्चे मन से भगवान को बुलाते हैं तो भगवान किसी ना किसी रूप में उनकी पीड़ा हर लेते है, ठीक ऐसे ही जब उनकी प्रेरणा होती है तो भक्त बिना किसी योजना के उनके दरबार में पहुँच ही जाता है!
ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ मै अपनी पी. एच. डी. की थीसिस लिखने में ब्यस्त था तभी हमारे एक परम मित्र अमित खरखडी जी ने अचानक कहा की हरिद्वार चलते हैं और भाई साहब (वहाँ अपने बड़े भाई तुल्य संत बालमुकुन्द जी भी उपस्थित थे) से मिलते हैं | बस फिर क्या था एक फोन हुआ रेडियो टेक्सी (तवेरा) हाजिर, और हमचल पड़े हरिद्वार |
सामान्य सी सोची यात्रा इतनी रोचक होगी हमें अंदाजा ही नहीं था | हम 3 .30 पर हरिद्वार पहुंचे , बालमुकुन्द जी एक कुष्ठ आश्रम ठहरे हुए थे | यह आश्रम संघ से लौटे एक प्रचारक माननीय आशीष जी के द्वारा शुरू किया गया था, हमें जानकारी मिली कि लगभग १००० कुष्ठ रोगियों कि चिकित्सा प्रतिदिन होती है | हमें तब जानकर आश्चर्य हुआ कि इन कुष्ठ रोगियों के बच्चों कि निशुल्क आवासीय विद्यालय भी "बंदेमातरम" संस्थान के माध्यम से चलाये जा रहे हैं | जिसकी देखरेख संघ से ही लौटे एक प्रचारक माननीय सर्वदेव जी करते हैं!
चंडीघाट के पास निर्मित यह कुष्ठ सेवाश्रम और वहीँ से आगे राजाजी नॅशनल पार्क से होते हुए चिल्ला बिजली परियोजना से कुछ दूरी पर मनोरम स्थान पर स्थित वह "वन्देमातरम" प्रकल्प को देखकर ऐसा लगा कि हम जो जीवन कि आपाधापी में एक दूसरे को पछाड़ते, लड़ते आगे बढ़ने के चक्कर में वास्तविक मनुष्यता को कहीं पीछे छोड़ चुके हैं | मुझे उन लोगों पर भी घृणा आई जो निरंतर संघ को और उनके द्वारा किये कार्यों कि भर्तसना करते हैं जबकि यह सत्य तक पहुंचते ही नहीं, खैर ..
उसके बाद हमने माँ चंडी के दर्शन किये तत्पश्चात हर कि पैड़ी पहुंचे और माँ गंगा की गोंद में बैठकर आसीम आनंद को प्राप्त किया और उनकी अदभुत आरती देखी |फिर निकल पड़े वापस उसी भागदौड़ की जिंदगी कि और ...|
अब बाकी जो यात्रा की रोचकता रही उसे अगले अंक में बताऊंगा, इस अंक में इसलिए नहीं लिखा की उसके चक्कर में भक्ति का माहौल दूषित हो जाता ..... तो इंतजार करें ...
प्रेम से बोलिए ..जय गंगा मैया !
रत्नेश त्रिपाठी

सोमवार, 7 जून 2010

ये कैसा गणतंत्र है !

हँस रही हैं मुश्किलें, फेल हुआ तंत्र है,
ये कैसा गणतंत्र है, ये देश का गणतंत्र है|

झूठ के बाजारों में बिक रहा 'स्वतन्त्र' है,
ये कैसा गणतंत्र है, ये देश का गणतंत्र है|

बढ़ रही महंगाई , आम जन हुआ परतंत्र है,
ये कैसा गणतंत्र है, ये देश का गणतंत्र है|

नेताओं की अमीरी, छोटा राज्य उनका यन्त्र है,
ये कैसा गणतंत्र है, ये देश का गणतंत्र है |

कानून इनकी मर्जी, विधान उनका जंत्र है,
ये कैसा गणतंत्र है, ये देश का गणतंत्र है|

बिक रहा है आज, देखो चौथा स्तम्भ है,
ये कैसा गणतंत्र है, ये देश का गणतंत्र है |

खुद हौसला करें, बदलना ही मूल मन्त्र है,
यही गणतंत्र है, ये ही गणतंत्र है !

रत्नेश त्रिपाठी

रविवार, 6 जून 2010

क्या मुसलमान कभी हिन्दू की तरह सोचेंगे ?

अभी ब्लाग जगत में चल रही बड़े छोटे ब्लागरों की स्वाभिमान की लडाई पर सबका ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है, जिसका कोई अर्थ समझ में नहीं आता है| लगता है हम भी झूठी टिप्पणिया बटोरने के चक्कर में व्यवसायिक पत्रकारों की तरह होते जा रहे हैं| जबकि लगातार हो रहे कुछ विशेष तत्वों के द्वारा हिन्दू धर्म पर बेवकूफी भरे (जिसको ये खुद नहीं समझते) प्रश्न जो अश्लीलता से भरे हैं, किये जा रहे हैं | इस पर ध्यान देना हम सबका फर्ज बनता है, ये ब्लाग के लिए नासूर ना बन जाये इसलिये ध्यान दें ! क्योंकि इनके खिलाफ भी काफी पोस्टे आनी शुरू हो गयी है, इस ब्लाग जगत को आखाडा ना बनाये | मैंने आजतक कभी हिन्दू मुसलमान को लेकर पोस्ट नहीं लिखा लेकिन बार बार हो रहे इन कृत्यों ने आज मजबूर कर दिया | आशा है सभी इसे एक सीख के रूप में ही लेंगे ...... क्यों कि मै यहाँ किसी को भी व्यक्तिगत रूप से लांछन नहीं लगा रहा और न हीं इसकी मुझे कोई जरुरत है !

अभी मैंने एक ब्लॉग पर तरुण विजय के लेख को पढ़ा, जिस तरुण विजय को इनके द्वारा जी भर कर गाली दी जाती है, आज वो इसलिए अच्छे हो गए क्योंकि उन्होंने इस्लाम और मुहम्मद साहब की अच्छाइयों का वर्णन किया है | कुछ समय से ब्लोग जगत में मुसलमान ब्लोगर हिन्दू धर्म को लेकर बहुत दुष्प्रचार कर रहे हैं। हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थों के बारे में उल-जलूल बातें कर रहे हैं. हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में अपशब्द कह रहे हैं. परन्तु यह हिन्दुओं की महानता है कि वो मुसलमानों की धार्मिक चीज़ों का सम्मान करते हैं. हिन्दू दरगाह पर जाते हैं, पर मुसलमान मन्दिर नहीं जाते. अगर कोई मुसलमान मन्दिर जाने की बात कह दे या हिन्दू धर्म/संस्कृति की प्रशंसा कर दे तो मुसलमानों को शूल चुभ जाते हैं. उसे काफिर घोषित कर देते हैं. सलमान खान ने गणेश पूजा में भाग ले लिया तो मुल्लाओं ने उसे धर्म से बाहर का रास्ता दिखा दिया. जब हिन्दू अभिनेता अजमेर दरगाह पर जाते हैं तो कोई भी हिन्दू धर्म गुरु उन्हें हिन्दू धर्म से नहीं निकालता.

क्या ये झंडाबरदार (जो खुद कितना इस्लाम को जानते है इसपर भी संदेह है) बता सकेंगे कि मस्जिद में जाने वाले हिन्दुओं कि संख्या में कितने प्रतिशत मुसलमान मंदिर में जाते हैं | केवल चिल्लाने से दूसरों को बहरा किया जा सकता है, सार्थक बदलाव लाने के लिए हर हाल में हिन्दू (उन्हें मै हिन्दू नहीं मानता जो मुसलमान को हिन्दू नहीं मानते) सोच ही विकसित करनी होगी, क्योंकि यही एकमात्र सर्वग्राही धर्म है | क्या कोई इससे कोई इंकार कर सकता है ! क्यों मुसलमान हिन्दुओं ने इतनी नफरत करते हैं? कि मुसलमान के मुंह से उन्हें हिन्दू धर्म की प्रशंसा सहन नहीं होती?
क्यों इस्लाम के नाम पर सदैव नफरत फैलाई जाती है? आज विश्व में जिन देशों में इस्लाम पर अधिक बल दिया जा रहा है, वही तबाही हो रही है.
ऐसा मै चाहता नहीं लेकिन आप जिस बात समझे वही लिखें, अपने मन कि गन्दगी को यहाँ ना उढेले अगर जानकारी की कमी है तो किसी विद्वान से जानकारी ले अन्यथा बदनाम करने के लिखना हो तो खुलेआम एलान करें हम भी तैयार है !

वैधानिक चेतावनी : यह पोस्ट किसी को बहकाने या भड़काने के लिए नहीं लिखी गयी है, जिसे समझ में आये वही टिप्पणी करे! इस ब्लाग पर गाली गौलझ कि अनुमति नहीं है !
रत्नेश त्रिपाठी

शनिवार, 5 जून 2010

राजीव शुक्ला का दोहरा चरित्र !

मुझे यह बताने की जरुरत नहीं की यह कौन हैं ? अरे वही जो खेलते हैं -पत्रकारिता से , देश की राजनीति से, क्रिकेट से और कितना गिने ! सबका ठेका हमने ही थोड़े ले रखा है इसका सर्वाधिकार तो उन्ही के पास सुरक्षित है | अब आते हैं असल मुद्दे पर, अगर आप ने नहीं पढ़ा तो एक बार पढ़ कर देखें (अरे मै ये क्या कर रहा हूँ ? इससे तो इनके लेख ८-१० और लोग पढ़ लेंगे)| ये माननीय अपने देश की ऊँची उठती अर्थव्यवस्था के आकडे को देखकर बहुत खुश हैं और हमारे प्रधानमंत्री जी (जिन्हें मैंने आज तक हंसते हुए नहीं देखा) और वित्तमंत्री जी के चेहरे की हंसी बयान कर रहे हैं, अमेरिका से तुलना करते हुए माननीय पत्रकार महोदय (जो अब पत्रकार रहे नहीं ) कहते हैं अमेरिका गर्त में जा रहा है और हम ऊपर जा रहे हैं | हाँ भाई! भूखे मरती जनता जमीं पर तो क्या गर्त में भी नहीं जा सकती आप सही कह रहे हैं, आम जनता को हर हाल में ऊपर जाना होगा, और जो हो भी रहा है ! उन्हें पाकिस्तान की बिगड़ती हालत की चिंता है, अमेरिका के गर्त में जाने की खबर है, पुर यूरोप की घटती जनसँख्या की चिंता है और बहुत कुछ , लेकिन भारत प्रगति कर रहा है, कांग्रेस के राज में (अरे मेरा मतलब महारानी सोनिया गाँधी और देश के युवराज राहुल गाँधी के राज में)| ये सार है हमारे माननीय राजीव शुक्ला जी के लेख का |

अब मेरी बारी (अरे! मेरा मतलब आम जनता) , शायद आपको याद हो की एक बार अपने ही साक्षात्कार में माननीय ने कहा था की अब मै विशुद्ध रूप से पत्रकार नहीं हूँ क्योंकि अब मुझे पार्टी के हित को ध्यान में रखकर लिखना होता है लेकिन मै पत्रकार हूँ | क्या आज का पत्रकार (जो थोड़े बहुत जीवित हैं, जिनमे स्वाभिमान बाकी है) इस तरह की बात लिखेगा जो रात दिन अपना समय आम जनता के बीच में गुजरता हो | जो वर्त्तमान में हर तरफ से मार खा रही जनता को जीते- मरते देख रहा है | अरे कौन सी अर्थव्यवस्था की आप बात कर रहें हैं, जितना आप की पार्टी पिछले ५० वर्षों में नहीं कर पाई उससे कहीं ज्यादा इस १० वर्षों में कर रही है , और आपकी इस करनी में आम जनता मर रही है |

आप इस देश की तुलना पाकिस्तान से कर रहे हैं क्या आप में बस इतनी ही समझ बची है, और तो और आप अमेरिका से भी ! अगर शर्म नहीं तो मत लिखिए, कलम पूजनीय होती है इसे किसी सरकार या परिवार का बंधक मत बनाईये | और हाँ हमें इस तरह की दलीलों से बेवकूफ मत बनाईये क्योंकि हम जानते है की जिसने इस राज परिवार मेरा मतलब है गाँधी परिवार की चापलूसी की वह कहाँ नहीं पहुँच गया | आप भी वही कर रहे हैं, एकदम करिए लेकिन इस दोहरे चरित्र से पत्रकारिता और आम जनता का मजाक मत उड़ाइए | ए.सी. की ठंडक और वी आई पी सुरक्षा से निकल कर सड़क के किनारे अभावग्रस्त पल पल दम घुटते भारत को देखिये यकीं मानिये आप कई दिनों तक भोजन नहीं कर पाएंगे |
रत्नेश त्रिपाठी

गुरुवार, 3 जून 2010

किस्तों में जिंदगी जीते हैं यहाँ लोग



1.
आज के दौर में इन्सान कहाँ खोया है
वह खुद को भूलकर क्यों गहरी नीद सोया है
क्यों उठता नहीं है आज के दौर में वह
शायद बूढ़े शरीर में वह दर्द लिए रोया है
फिर ये आज का नौजवां कहाँ गुम है
कुछ ना पूछो! वह इश्क के बाजार में खोया है.


2.
किस्तों में जिंदगी जीते हैं यहाँ लोग
हर बूंद मैखाने की पीते हैं यहाँ लोग
ये सोचकर की आगे खुशहाल जिंदगी है
हर पल इसी धोखे में जीते हैं यहाँ लोग.


3.
जिसने जनम दिया उसे हम भूल जाते हैं
पाला है जिसने हमको उससे नजर मिलाते हैं
अगर यही है प्यार तो नफ़रत किसे कहें
इस प्यार में ना जाने हम क्या पाते हैं

रत्नेश त्रिपाठी