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सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

हमारी प्राचीनता और विश्व

विगत 19-20 फरवरी 2010 को दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी हुयी, विषय था '' पूर्वी उत्तर प्रदेश का पुरातात्विक गौरव'' इतिहास का शोधार्थी होने और सेमिनार की व्यवस्था की दृष्टि से मुझे विश्वविद्यालय द्वारा बुलाया गया, इस सेमिनार में देश भर से आये इतिहासकारों और विद्वानों ने वर्त्तमान में हो रहे शोधों के नवीन प्रकाश में तथ्यों पर अपने-अपने विचार रखे, इनमे जो महत्वपूर्ण बातें सामने आयीं उससे हर भारतीय दुनिया के सामने अपने गौरव को बताते हुए यह कह सकता है कि, जब विश्व में अन्य जगहों पर लोगों का जन्म ही नहीं हुआ था, उस समय भारत में धान कि खेती होती थी, हम ही हैं जिन्होंने इस धरा पर सर्वप्रथम अन्न उपजाया.
इस संगोष्ठी से जो मुख्य बातें निकलकर सामने आयीं वो निम्न हैं :-

* यह कि अभी तक सबसे प्राचीन धान कि खेती का प्रमाण चीन से मिला था लगभग 3000 BCE लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश ले लहुरादेवा नामक स्थान से हुयी खुदाई से प्राप्त चावल कि डेट 8000 BCE मानी गयी है (यहाँ उन अक्ल के अंधों को मै बता दूँ जो खाते इस देश का हैं लेकिन बोलते आक्सफोर्ड कि भाषा है! इस चावल का परीछण भारत और बिदेश दोनों जगह एक साथ हुआ और डेट 8000 BCE निकली)

* इस हिसाब से हम इस विश्व में सबसे प्राचीन अन्न उत्पादक हैं. अब उन तथाकथित विद्वानों को भी इस खोज से चक्कर आ गया है और ये (शायद इनको बामपंथी या यूरोपीय विचारधारा का कहा जाता है ) इसे नई कहानी से जोड़ रहे हैं और कह रहे हैं कि चीन कि मुंडा जाति ने इसे भारत में लाया, अब इन्हें कौन समझाए कि 3000 में और 8000में 5000 वर्षों का फासला है . इस संगोष्ठी में इन बेहूदा विचारों कि भर्तष्ना की गयी.

* सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि एक मत से सभी विद्वानों ने यह माना कि हमें उन पुराने यूरोपीय तरीकों को छोड़कर भारतीय दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में तथ्यों को (पुरातात्विक साक्ष्यों) उपनिषदों तथा वेदों में वर्णित बातों सा सामंजस्य बैठाना चाहिए ताकि सही इतिहास लिखा जा सके. क्योंकि जिन वेदों को गड़ेरियों का लिखा गीत (हमारे सम्माननीय प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी भी ) ये तथाकथित विद्वान् मानते रहे वह आज एक एक कर वैज्ञानिक तथ्य बनते जा रहे हैं.

रत्नेश त्रिपाठी

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

सभी ब्लागर भाईयों को महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं

सभी ब्लागर भाईयों को महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं!
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम !
उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्योर्मुर्क्षीय मामृतात !!
ॐ नमः शिवाय

साथ ही साथ इस देश की युवा पीढ़ी जो अपने जीवन मूल्य भूलकर केवल सवार्थी प्यार की खातिर वेलेंटाईन डे जैसे त्यौहार मनाते हैं उनका विरोध न करते हुए यही कहना चाहता हूँ कि,

अपने प्यार का ये आधार होना चाहिए
प्रेमिका के साथ पूरा परिवार होना चाहिए

रत्नेश त्रिपाठी