आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

स्लम कौन, डाग कौन और मिलेनियेर कौन?

सर्वप्रथम देशवासियों को (उन्हें जो आस्कर मिलाने से प्रसन्न हैं ) बधाई. आज वह सभी देसवासी जिन्हें आस्कर का महत्व समझ में आता है, खुश हैं. आज भारत की सरकार भी खुश है, आज पूरा सदन एक साथ खुश है क्योंकि उन्हें भी आस्कर एवार्ड का महत्व समझ में आता है. लेकिन मैं खुश नहीं हूँ (जिसका सायद ही समाज पर असर पड़े) क्योंकि मैं अभी तक इस फिल्म के शीर्षक से भारतीय समाज का तादात्म्य स्थापित नहीं कर पा रहा हूं. क्योंकि मुझे आस्कर से अधिक हमारे देश का वह नागरिक महत्वपूर्ण लगता है जिसके नंगेपन को उघाड़कर यह अवार्ड जीता गया.

क्या इसके पहले भारत में फिल्में नहीं बनी जिसने भारतीय संस्कृति को उजागर नहीं किया, उन्हें अवार्ड क्यों नहीं मिला? क्योंकि यूरोप हमें तीसरी दुनिया ( यह हमारे लिए गाली है) मनाता है यैसे में वह हमारी संस्कृति के अच्छे रूप को कैसे अवार्ड दे सकता है.मेरी यैसी कोई दुर्भावना नहीं है की हमें क्यों आस्कर अवार्ड मिला, बल्कि मैं यही विचार कर रहा हूं कि क्या यह अवार्ड इस फिल्म को मिला है? या कि इसके आड़ में भारत कि गरीबी को सामने लाकर एक गाली दी गयी है.

जब मै (एक आम आदमी) एक आम आदमी के बारे में व इस अवार्ड के बीच तादात्म्य बैठा रहा था तो मुझे अपने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभाद्यक्ष व सारे सदन का वक्तव्य मुझे अन्दर से झकझोर रहा था. हमारे राष्ट्रपति जी ने कहा कि इस अवार्ड ने पुरे देश का मन बढाया है. पधानमंत्री जी ने भी कहा कि फिल्म कि पूरी टीम ने भारत का सम्मान बढाया है हम सभी को उनपर गर्व है.विश्व समुदाय( यूरोपीय देश) की इस अप्रत्यक्ष गाली रूपी अवार्ड पर हमारे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व पुरे सदन को गर्व है, तो क्या उन्हें भारत की गरीबी पर खुद पर शर्म नहीं आणि चाहिए. क्या उन्हें यह नहीं दिखता की जिस पठकथा पर यह अवार्ड मिला है वह भारत के गरीबी के नंगेपन को उजागर करता है. मुझे लगता है कि इनसे अच्छे वे यूरोपीय है जिसने भारत में आकर यहीं के लोंगो के साथ मिलकर हमारी समृद्धि कि पोल खोल दी. और हम अवार्ड के नामपर अपने ही लोगों कि दुर्दशा पर खुश हो रहें हैं. इससे मुझे एही लगता है कि स्लम हम(आम नागरिक), डॉग हमारे देश के नेता व मिलेनियर वह यूरोपीय है जिसने हमको हमसे ज्यादा सही समझा, और स्लम डॉग मिलेनियर बनाकर हमें ही गाली देकर हमें ही खुश कर दिया.

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

यूज एंड थ्रो

आज अगर हम स्थायित्व की बात करें तो हमें अच्छी सोच वाला कहा जायेगा, जबकि अच्छी सोच कहने वाला खुद नहीं जानता की स्थायित्व क्या होता है, चलिए हम इस बात को यैसे समझते हैं की, कभी समय था की हम कलम और दवात का प्रयोग करते थे, जिसमे कम खर्चे में भी स्थायित्व होता था। हम एक ही कलम से सालों लिखते थे और एक दवात स्याही महीनों चलती थी. यैसे में यूज अधिक होता था और थ्रो कम होता था. समय बदला हम आधुनिक हुए (आधुनिकता की एक परिभाषा मेरी दृष्टि में यह भी है की यह अपनी मौत की तरफ भागने के लिए प्रेरित करता है), और कलम दवात की जगह रिफिल वाली बालपेन ने ले लिया उससे और आधुनिक हुए तो जेल पेन आया. आज स्थिति यह है की यह आधुनिकता पैसे को भी बर्बाद कर रही है और यूज की कम थ्रो की पद्धति अधिक विक्सित कर रही है, वर्त्तमान में मनुष्य की भी यही दशा है, वह भी अपने रिश्तों को यूज एंड थ्रो की तरह ही समझता है और अपने को आधुनिक कहता है इतना ही नहीं वह स्थायित्व की बात भी करता है, यैसे में यदि इस आधुनिक विचारधारा की तुलना करें तो स्थायित्व यूज एंड थ्रो के साथ इस आधुनिक युग में संभव नहीं दिखता. मानवीय जीवन में इसके अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं. आज हम प्यार किसी और से करते हैं और शादी किसी और से यहाँ भी यूज एंड थ्रो, हम शादी के बाद अकेले रहना चाहतें है लेकिन समस्या आने पर माँ बाप याद आते हैं फिर उसके बाद अकेले. माँ बाप के साथ भी यूज एंड थ्रो, दूसरी पसंद आने पर पत्नी से तलाक यहाँ भी यूज एंड थ्रो, और जाने कितने उदहारण है. आज कोई भी किसी भी वस्तु को अधिक दिनों तक आपने पास नहीं रखना चाहता क्योंकि वह आधुनिक है और यूज एंड थ्रो पर विस्वास करता है. इसी लिए हमारे देश में भी साल में एक बार सभी को याद करने का त्यौहार मनाया जाने लगा है, मदर डे, फादर डे, सिस्टर डे, वेलेनटाइन डे, ब्रदर डे, फ्रैंडशिप डे, आदि आदि. क्योंकि अब हमारे पास समय नहीं रहा हम आधुनिक हो गए हैं और यूज एंड थ्रो से काम चला रहे हैं.