तुझको कैसे बतलाये हम, जाने क्या-क्या भूल गए,
तेरी आँखे याद रही बस, तेरा चेहरा भूल गए .
हँसना अपनी फितरत है, सो हँस कर आंसू पीते हैं,
तेरी खातिर कितना तडपे, तुझे बताना भूल गए.
कल तक तुझको मिल जाएगी, चिट्ठी डाल के सोचा था
घर पहुंचे तो याद आया, पता तो लिखना भूल गए .
हमने सबकी प्यास बुझाई, सबको जीवन दान दिया,
सब खुश थे अपनी मस्ती में, मेरी तृष्णा भूल गए.
कुछ दिनों पहले सड़क पे चलते हुए एक फटा सा कागज का टुकड़ा मिला, ये सोचकर की ये पैरों से रौंदा जा रहा है अतः इसे उठाकर किनारे करने की सोची तभी उस टुकड़े पर इस अधूरी कविता को पाया, मैंने इसके रचयिता के बारे में अपने सभी शुभचिंतको से पूछा लेकिन पता नहीं चला, सो इसकी आखिरी डेढ पंक्ति को अपने से पूरा किया. अभी भी इसके रचयिता के नाम का इंतजार है.
रत्नेश त्रिपाठी
रविवार, 7 मार्च 2010
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5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर कविता.
धन्यवाद
BAHUT SUNDAR KABITA HAI. DHAYABAD
Subedar. 7.00 pm
शेर बहुत ही लाजवाब हैं ... अनाम कवि को सलाम ...
bahoot badhiyaa
aapki sanvedanshilta ne ek kavita ko marne se bachaa liya,,
उतम कविता
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