आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

नकारात्मक मताधिकार कितना सही कितना गलत

वर्त्तमान में एक बहस चुनाव आयोग व केंद्र सरकार के बीच चर्चा का केंद्र बनी है, और वह है नकारात्मक मताधिकार। इस समय सर्वोच्च न्यायालय में इसके समर्थन व विरोध में बहस चल रही है. मामला यह है कि जनता को यह अधिकार दिया जाय कि उसे अपने क्षेत्र के उम्मीदवार नेता पसंद न आने पर उनके खिलाफ नकारात्मक वोटिंग कर सके और अगर नकारात्मक मतों कि संख्या अधिक हो तो चुनाव रद्द कर दिया जाय. चुनाव आयोग के द्वारा तीन बार केंद्र को भेजे पत्र को नकार देने के बाद न्यायालय कि शरण लेनी पड़ी. इसका विरोध पुरे सदन के नेताओं ने एक स्वर में किया, यह देश का सौभाग्य ही होगा कि सदन के सभी नेता देश के किसी मसले पर एकमत हों लेकिन यह नही होता, परन्तु जब भी नेताओं के योग्यता पर प्रश्नचिंह लगता है तो अपनी कुर्सी बचाने के लिए ये सियारों कि तरह एक सुर में चिल्लाने लगते हैं क्योंकि वर्त्तमान नेताओं को डर है कि ऐसा हो जाने पर ये कभी सदन तक नहीं पहुच सकते । अब यैसे में प्रश्न यह उठता है कि प्रजातंत्र कि परिभाषा में यदि सभी शक्तियां जनता में समाहित है तो इस विषय में सीधे जनता को निर्णय लेने का अधिकार क्यों नहीं है . इसका फैसला करने वाले ये नेता कौन है जबकि वह भी आम जनता के द्वारा ही चुने जाते हैं. अत: इस मसले पर सीधे जनता से वोटिंग कराकर जो निर्णय आये वह मान्य हो जिसे ये सदन में बैठे नेता अपनी सुविधानुसार बदल न सके.

6 टिप्‍पणियां:

अंकुर गुप्ता ने कहा…

bilkul sahi. aam chunawon kee tarah isake liye bhee ek chunav hona chahiye.

अनिल कान्त ने कहा…

वो तो देने वाले की सोच पर निर्भर करता है कि वो क्या सोचता है .....


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

यह इस तथाकथित लोकतंत्र की दिन दूने रात चौगुने गति से छीजती विश्वसनीयता को बचने के लिए एक टोटके से अधिक कुछ नहीं है.

पवन कुमार अरविन्द ने कहा…

किसी निर्वाचन क्षेत्र के सभी अयोग्य प्रत्याशियों को नकारने का सबसे अच्छा तरीका है.
काबिले-तारीफ है आपका चिंतन, हुजूर!
----पवन कुमार अरविन्द
नई दिल्ली

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रत्नेशजी
कहना तो ठीक है और अगर चुनाव अधिकारी चाहीं तो हो भी सकता है.
इस बात को आम चुनाव के साथ ही तय करवाया जा सकता है .............अलग से करवाने की जरूरत ही नही है......आम चुनाव के साथ एक और पात्र पर राय ली जा सकती है. पर असल मुद्दा है............आज के नेताओं को मनाने का, जो आनऐ वाले ५० सालों तक तो सम्भव नही दीखता

mishra gorakhpuriya ने कहा…

pahle to namaskare. aap ki baat se sahmat hu main kayoki neta sahi ya galat iska faisala to janta ko karne k liye hi dena chahiye.isse samaj main sahi naetritav a sakega.aj desh main yuva sabse jayada hai jo desh ki haalat ko dekata samajhta hain isliye is tarah ke kaam to hone hi the aap ne vichar ko prakash me laya aap ko danyavad.aant main aap ke is lekh par kuch kahna chahunga ki..... HO GAI HAIN PEER PARVAT SI PIGHALNI CHAHIYE , IS HIMALAY SE KOI GANGA NIKALNI CHHIYE. SAURABH