आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

शनिवार, 31 जनवरी 2009

माँ

जब पतझड़ सबकुछ लूटता है, हरियाली भय खा जाती है,

तब उर को फाड़कर धरती माँ, अपना सर्वस्व लुटाती है ।

इतना अर्पण व त्याग कहाँ कोई भी नर कर पाता है?

जब नौ महीने गर्भ में रख, माँ नवजीवन उपटाती है ।

ये माँ ही है जो हर पल , नवजीवन सृजन चलाती है,

बेटी है उसका प्रथम रूप, तुम्हे मार के लाज न आती है।

हे पुरुष तेरा अस्तित्व है क्या? हे मनुज तेरा कृतित्व है क्या?

उस माँ के आँचल में झांको , वह लघु से वटवृक्ष बनाती है।

अस्तित्व विहीन न हो जाओ , इसलिए ध्यान इतना रखना ,

जो माँ के हर रूप को पूजते हैं , दुनिया उसके यश गाती है ।

रत्नेश त्रिपाठी

6 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Vinay ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Anwar Qureshi ने कहा…

सुंदर शब्दों से सजाया है आप ने बहुत बधाई ..

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर....

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुंदर
बसंत पंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामना

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

क़र्ज़ माँ का है बड़ा, ये जानते हैं हम सभी .
हैं बहुत उपकार इसके ,हम न गिन सकते कभी.
बस मैं इतना ही कहूँगा रत्नेश त्रिपाठी जी
- विजय