आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

शनिवार, 31 जनवरी 2009

माँ

जब पतझड़ सबकुछ लूटता है, हरियाली भय खा जाती है,

तब उर को फाड़कर धरती माँ, अपना सर्वस्व लुटाती है ।

इतना अर्पण व त्याग कहाँ कोई भी नर कर पाता है?

जब नौ महीने गर्भ में रख, माँ नवजीवन उपटाती है ।

ये माँ ही है जो हर पल , नवजीवन सृजन चलाती है,

बेटी है उसका प्रथम रूप, तुम्हे मार के लाज न आती है।

हे पुरुष तेरा अस्तित्व है क्या? हे मनुज तेरा कृतित्व है क्या?

उस माँ के आँचल में झांको , वह लघु से वटवृक्ष बनाती है।

अस्तित्व विहीन न हो जाओ , इसलिए ध्यान इतना रखना ,

जो माँ के हर रूप को पूजते हैं , दुनिया उसके यश गाती है ।

रत्नेश त्रिपाठी

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

नकारात्मक मताधिकार कितना सही कितना गलत

वर्त्तमान में एक बहस चुनाव आयोग व केंद्र सरकार के बीच चर्चा का केंद्र बनी है, और वह है नकारात्मक मताधिकार। इस समय सर्वोच्च न्यायालय में इसके समर्थन व विरोध में बहस चल रही है. मामला यह है कि जनता को यह अधिकार दिया जाय कि उसे अपने क्षेत्र के उम्मीदवार नेता पसंद न आने पर उनके खिलाफ नकारात्मक वोटिंग कर सके और अगर नकारात्मक मतों कि संख्या अधिक हो तो चुनाव रद्द कर दिया जाय. चुनाव आयोग के द्वारा तीन बार केंद्र को भेजे पत्र को नकार देने के बाद न्यायालय कि शरण लेनी पड़ी. इसका विरोध पुरे सदन के नेताओं ने एक स्वर में किया, यह देश का सौभाग्य ही होगा कि सदन के सभी नेता देश के किसी मसले पर एकमत हों लेकिन यह नही होता, परन्तु जब भी नेताओं के योग्यता पर प्रश्नचिंह लगता है तो अपनी कुर्सी बचाने के लिए ये सियारों कि तरह एक सुर में चिल्लाने लगते हैं क्योंकि वर्त्तमान नेताओं को डर है कि ऐसा हो जाने पर ये कभी सदन तक नहीं पहुच सकते । अब यैसे में प्रश्न यह उठता है कि प्रजातंत्र कि परिभाषा में यदि सभी शक्तियां जनता में समाहित है तो इस विषय में सीधे जनता को निर्णय लेने का अधिकार क्यों नहीं है . इसका फैसला करने वाले ये नेता कौन है जबकि वह भी आम जनता के द्वारा ही चुने जाते हैं. अत: इस मसले पर सीधे जनता से वोटिंग कराकर जो निर्णय आये वह मान्य हो जिसे ये सदन में बैठे नेता अपनी सुविधानुसार बदल न सके.

मंगलवार, 27 जनवरी 2009

विनोद दुआ का पागलपन

आज (२७-०१-०९ ) के एनडी टीवी का विनोद दुआ लाइव कार्यक्रम देखकर येसा लगा की विनोद दुआ कोई जिम्मेदार पत्रकार न होकर एक कुंठित मानसिकता के रोगी हो गए है क्योकि पाकिस्तान की तुलना भारतीय संस्कृति से करना वह भी कुछ पागल लोगो के कृत्यों के आधार पर और उन सब को कटघरे में खडा करना जो जीवन पर्यंत इस राष्ट्र के कल्याण के लिए व्रत लिए हैं. येसा लगता है की आज की मिडिया अपने नशे में चूर किसी को कुछ भी कह सकती है , इन्हें जरा भी यह एहसास नहीं है की यह क्या कह रहे हैं और इसका क्या प्रभाव पडेगा. ये जिस संस्था(आर एस एस ) की तुलना पाकिस्तान से कर रहे हैं अगर उसके सामाजिक कार्यों को यह स्वस्थ मानसिकता से देखे तो इन्हें अपने आप पर शर्म आ जायेगी . यह जो कुछ पागलों का समूह श्रीराम सेना कर रही है उन सभी को दण्डित किया जाना चाहिए और येही बात आर एस एस ने भी कही है इसमे न जाने विनोद दुआ को कहा से गलती नजर आ रही है . मुझे तो लगता है की वह भी श्री राम सेना के ही समर्थन में बोल रहे है और उसको कही न कही बढ़ावा दे रहे हैं. अगर वह प्रस्तावित समाचार को तथा अपने डेस्क को छोड़ कर बाहर आवें व शुद्ध पत्रकारिता के सिद्धांत को अपनावें तो उन्हें इस घटना में सिर्फ उन पागलों का ही हाथ नजर आएगा न की अन्य का. रही बात पाकिस्तान व तालिबान से भारत की तुलना का तो सांस्कृतिक रूप से उनमे व हममे जमीं आसमान का अंतर है लेकीन यह बाते झूठी पत्रकारिता करके व पैसे की लालच में अपने पेशे को बेच करके नहीं समझी जा सकती. मै भगवान से प्रार्थना करता हूँ की विनोद दुआ और इन जैसे पत्रकारों को सदबुद्दी दे व अपने पेशे को ईमानदारी व पारदर्शिता से चलने की प्रेरणा दे.

रविवार, 25 जनवरी 2009

कल्याण सिंह

कल्याण सिंह के पास भाजपा छोड़ने के पर्याप्त कारणथे। पहला उनकी कुंठित मानसिकता , दूसरा अपनी प्रेयसी को भाजपा में स्थापित करके उसके लिए चिंतामुक्त होना और सबसे बड़ा कारण अपने को भाजपा में अकेला मानते हुए अपने भविष्य के प्रति आशंकित होना । अपनी हठधर्मिता को बनाये रखने के लिए उनको एक मजबूत संबल की आवश्यकता थी (जिसे उनकी भाषा में वर्त्तमान के चाणक्य और आम भाषा में थाली का बैगन ) जिसे माननीय अमर सिंह ने प्रदान किया और पुरस्कार स्वरुप उनके पुत्र को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया । अब इतने सारे फायदों को कौन छोड़ना चाहेगा वह भी वर्त्तमान का राजनीतिज्ञ । कल्याण जी को अपनी वह बात भी याद नही आई की मेरी मृत्यु भगवा झंडे के नीचे होगी । अमर सिंह को चाणक्य कहने वाले कल्याण क्या अपने को विभीषण मानेगे ? यैसे बहुत सारे प्रश्न आज उनके सामने है , वह उन प्रश्नों का उत्तर कैसे देते हैं यह तो भविष्य ही बताएगा किंतु इतना तो कहा ही जा सकता है कि उनके भाजपा छोड़ने से उनको हानि कम और फायदा ज्यादे हुआ है। और अब भाजपा को यह सोचना पड़ेगा कि उनको कैसे जबाब दिया जाए.