गुरुवार, 27 मई 2010
बुद्ध पूर्णिमा
जब अंधकार की काली छाया
मन के भूतल को तोड़ती है
समाज की बेढंग तरंगे जब
जल के रुख को मोड़ती हैं
हर रोज हमें होने का कुछ
मतलब ना समझ में आता है
एक अप्रितिम उज्जवल किरण सा
कोई हमें राह दिखाने आता है
छोड़ मायावी दुनिया को जब
देह का तात्पर्य समझ में आता है
वह निश्छल निर्मल काया
बुद्धत्व कहलाता है.
रत्नेश त्रिपाठी
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10 टिप्पणियां:
आज बुद्ध पूर्णिमा पर सटीक रचना ..
Haan ! Sach hai..yahee to nirvaan kee avastha hai!
वाह !बड़ी सुन्दर रचना है ,,,पढ़ते ही मन में उतर गयी सभी ...शब्दों को अच्छा साधा है ,,,,,,गहरे भाव लिए हुए अति उत्तम रचना
बहुत सुंदर रचना जी
संगीता जी आपने सराहा यही मेरा आशीर्वाद है,
राज जी आप का आशीर्वाद हमेशा मेरे मनोबल को बढाता है,
सबका आभार
buddhtv ki rah pr chl pade vyakti ke hriday se hi ese udgar nikal sakte hai.adbhut....
क्या आपको याद है कि किस तरह जानवरों ने वेमियान में महात्मबुद्ध जी निशानियों को मिटाया था
सेकुलर हिन्दू वही सब भारत में करवाने की तैयारी कर रहे हैं।
बुद्ध पुर्णिमा के अवसर पर बेहतरीन प्रस्तुति ।
छोड़ मायावी दुनिया को जब
देह का तात्पर्य समझ में आता है
वह निश्छल निर्मल काया
बुद्धत्व कहलाता है.
बुद्धत्व की परिभाषा को बहुत ही कम शब्दों में बड़ी खूबसूरती से कह डाला आपने......!
शानदार पोस्ट का आभार
छोड़ मायावी दुनिया को जब
देह का तात्पर्य समझ में आता है
वह निश्छल निर्मल काया
बुद्धत्व कहलाता है...
बुध तत्व को कुछ शब्दों में उतार दिया है आपने ...
बधाई ...
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