आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

शनिवार, 29 मई 2010

हमारे नेता !

1
भूख बेचता हूँ मै भूख बेचता हूँ
है कोई बाकी मै खूब बेचता हूँ
कटने से पहले सुनो कौन हूँ मै
मै हूँ नेता ! जो लहू बेचता हूँ


2
देश की आन से तौबा
देश की मन से तौबा
देख ये लोग कैसे हैं
जिन्हें इमान से तौबा
ना पूछ इनको क्या कहते हैं इस जहाँ में
ये देश के नेता हैं जिनके नाम से तौबा


3
जो ले जाते हैं देश को नई राह पर
वह लोग कहे जाते हैं नेता !
पर नेता शब्द का सही अर्थ
जानते नहीं खुदगर्ज ये नेता |

रत्नेश त्रिपाठी

13 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

जनसेवा पर ध्यान कम निजसेवा पर ध्यान।
नेता कहीं न बेच दे सारा हिन्दुस्तान।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

kshama ने कहा…

Kya karen! Isi dharti ki upaj hain yah neta..hamarihi maa bahnon ke kokhse janme hain yah neta!Kya inhen koyi pariwarik sanskar nahi mile?

Unknown ने कहा…

तीखा प्रहार

Ra ने कहा…

मौन ओढ़ कर सोये भारती, अब तो आँखें खोलो,
पाव बची हिन्दता गल्ले में, बांट लगाकर तोलो।
गर्द जमी पलकों को रक्त से, मार पंछाटे धो लो,
शव जलाकर हिंद शान का , कैसे कह दूँ सो लो।

बजरंग पूछ सा बढ़ा जा रहा, झूंठी आजादी का कष्ट,
एड़ी से चोटी तक सारी, जन-सरकार व्यवस्था भ्रष्ट।
रिश्वत, इज्ज़त,मनुष्यता खाते, सफ़ेद पोश है व्यस्त,
रबड़ी निगले, दोनें उड़ाते, चम्मच चटाकर करते मस्त।

नैतिकता की हंडिया चढ़कर, दन्त दिखाते हाथी,
इतने तो हेवान नहीं थे इनके, कपटी फिरंगी साथी।
प्रेतों के तांडव नृत्य ने, पूर्ण वसुधा मरघट बना दी ,
जिन्दा वतन को लाश बता, हाथो से दफना दी ।

बगुले, गिद्द, कौए यारी ने, अजब रची महामाया,
वहशी छलियों को सौंप देश, सोचो हमने ये पाया।
साठ बरस से नोंच-नोंचकर, की रक्तिम माँ की छाती,
खून टपकते देख आँचल से, सब खोल खड़े बरसाती।

मन कुरेद कर फेंक दो खंज़र, लेखन के हत्यारों,
चीख-चीख कागज़ पे चढ़, स्याही के छीटें ना मारो।
फन का हुनर भूल गए क्या, कलम के फनकारों,
यूँ लिखो असि से चमके, भोजपत्र के कोने चारों।

मौन ओढ़ कर सोये भारती, अब तो आँखें खोलो,
पाव बची हिन्दता गल्ले में, बांट लगाकर तोलो।
गर्द जमी पलकों को रक्त से, मार पंछाटे धो लो,
शव जलाकर हिंद शान का , कैसे कह दूँ सो लो।
***
रचनाकार.............. राजेन्द्र मीणा

Ra ने कहा…

माफ़ करना बंधुवर कुच्छ ज्यादा बड़ी टिपण्णी यार दी ...आपकी रचना पढ़कर {रचना से खुश ,,,मौजूदा हालात से दुखी } दुखी हुआ ...आज देश की जो हालत है ...देखकर रक्त उबलता है ....निकाल दी सारी भंडास

aarya ने कहा…

राजेंद्र जी !
आपकी हर बात अक्षरश स्वीकार करता हूँ, क्योंकि मैंने तो आईना भर दिखाया लेकिन आपने तो पूरी कहानी बयान कर दी |
वन्देमातरम |
रत्नेश

दिलीप ने कहा…

waah sundar aur rajendra ji aapki kavita to lajawaab aur sochne ko majboor karne wali hai...

मिलकर रहिए ने कहा…

मेरे नए ब्‍लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्‍ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।

राजकुमार सोनी ने कहा…

काफी धारधार लिखा है आपने। आपको बधाई।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

भूख बेचता हूँ मै भूख बेचता हूँ
है कोई बाकी मै खूब बेचता हूँ
कटने से पहले सुनो कौन हूँ मै
मै हूँ नेता ! जो लहू बेचता हूँ

तीनों क्षणिकायें सशक्त .....!!

aarya ने कहा…

हरकीरत जी !
हौसलाफजाई के लिए आपका धन्यवाद |

दिगम्बर नासवा ने कहा…

देश की आन से तौबा
देश की मन से तौबा
देख ये लोग कैसे हैं
जिन्हें इमान से तौबा ...

सच है हमारे देश के नेता कुछ भी कर सकता हैं ... जो लोगों की मौत से खेल सकते हैं .. वो क्या नही कर सकते ..

राज भाटिय़ा ने कहा…

भूख ओर मोत बेचते है यह नेता, बहुत सुंदर लिखा आप ने, धन्यवाद