आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

शनिवार, 9 जुलाई 2011

वर्त्तमान प्रेम की पराकाष्ठा !


कल रात मैच देखते देखते चैनल बदला तो बिंदास चैनल पे इमोशनल अत्याचार नामक एपिसोड आ रहा था जिसमे प्यार का वर्त्तमान स्वरुप दिखाया जा रहा था और जज के रूप में थे इमरान हाश्मी और महेश भट्ट |
हुआ यूँ की एक प्रेमिका अपने प्यार पे विश्वास न करते हुए अपने प्रेमी की जाँच करवा रही थी और इनके प्रेमी निकले बेवफा और तीन... के साथ प्यार करते हुए पकडे गए उसके बाद हुआ इन प्रेमियों में माँ बहन की गाली का दौर और हाथापाई ...और बाद में समझाने आये देश के सांस्कृतिक प्रदूषण इमरान हाशमी और इस प्रदुषण के पोषक महेश भट्ट इन्होने जब उस लडके से पूछा की तुमने ऐसा क्यूँ किया तो उसने कहा लाईफ में ये चलता है (यानि की उसने उन्ही की कहानी उन्ही को सुना दी) और यही (अपनी प्रेमिका को) कौन सी सही है .....बाद में नंबर आया हासमी जी का तो उन्होंने कहा की दोनों खुश रहें !
ये तो रहा सामान्यतया वर्त्तमान प्रेम का सामान्य स्वरुप ...लेकिन प्रश्न ये उठता है कि अपनी अय्याशी को हम प्रेम का नाम देकर क्या चाहते हैं ? और हमारा यही समाज जो छोटी बच्ची को बेटी के रूप में देखता था अपनी बराबर कि लड़की को बहन अपनी से बड़ी को माँ के रूप में देखता था ....वह समाज आज हर उम्र के औरत को भोग कि वस्तु के रूप में देख रहा है और इसमे साथ देने का आम कहीं न कहीं महिला वर्ग का भी है!
लेकिन जो सबसे बड़ा कारण है वह यह है कि सबसे बड़े दोषी माता पिता हैं जिनमे ने खुद संस्कार बचा है और न ही अपने बच्चों में संस्कार दे पा रहे हैं...
विचार तो और भी हैं इस विषय पर लेकिन सोचने के लिए फिलहाल इतना कि ..क्या हम पढेलिखे लोग प्रेम कि परिभाषा जानते हैं ? और क्या नारी केवल भोग कि वस्तु है ?....
डॉ रत्नेश त्रिपाठी

9 टिप्‍पणियां:

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

यह हमारे दिमाग में मीडिया के वर्चस्व का परिणाम है

aarya ने कहा…

ये वर्चस्व तभी स्थापित हो रहा है जब हम अपने नैतिक मूल्यों से नीचे गिर रहे हैं .....

आशुतोष की कलम ने कहा…

मुझे लगता है रत्नेश जी..
इसमें संस्कारों के साथ साथ हमारी सिक्षा पढ़ती का भी योगदान है..आज स्कुल जाने वाली १६ साल से कम उम्र की बच्चियों में ३०% शारीरिक सम्बन्ध बना चुकी होती है..
हम यूरोप को भी पीछे छोड़ने वाले हैं...
मैकाले का प्रबंधन अब रंग दिखा रहा है....

Smart Indian ने कहा…

टीवी द्वारा अनैतिकता का महिमामण्डन और प्रचार तो सही नहीं कहा जा सकता।

संजय राणा ने कहा…

रत्नेश जी ,
अभी तो देखते जाओ मैकाले की शिक्षा पद्वति फ़ैल रही है वो दिन दूर नहीं जब हम अपने माँ बाप बच्चों के साथ बात नहीं कर पायेंगे !
क्यूंकि पशिमी सभ्यता इतनी हावी होती नजर आ रही है की हमारे परिवार नैतिक चरित्र को भूलते जा रहे हैं ये सारा का सारा कसूर मीडिया का है !

aarya ने कहा…

आशुतोष जी बिलकुल सही कहा आपने !

aarya ने कहा…

भाई जी हम सारा कसूर मिडिया का नहीं कह सकते ....हमने अपनी जिम्मेदारिओं से भाग कर ही मीडिया या इन जैसे बुरायिओं को न्यौता दिया है .......

kshama ने कहा…

लेकिन जो सबसे बड़ा कारण है वह यह है कि सबसे बड़े दोषी माता पिता हैं जिनमे ने खुद संस्कार बचा है और न ही अपने बच्चों में संस्कार दे पा रहे हैं...
Sahmat hun.....!

aarya ने कहा…

धन्यवाद आपका Kshama जी !