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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

सच जो हम भूल गए हैं !
भारतीय जीवन दर्शन जिसे संबोधन में हिन्दू धर्म कहा जाता है ..वर्तमान में उसको समझने की बहुत आवश्यकता है..आज हम अपनी नासमझी कहें या जबरजस्ती की बुद्धिमानी .....अपने धर्म से विमुख हो चुके हैं ...कुछ बिंदु जिसपर ध्यान दिया जाना परम आवश्यक है .........
१-   यह देश अपनी मूल संस्कृति से मातृ पूजक है ....इस बात को सिद्ध करने के लिए स्वयम भगवान शंकर अर्धनारीश्वर का रूप अपनाते हैं | शक्ति की पूजा के बाद ही श्रीराम रावण को मार सके | इसलिए बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा खंडित भारतीय समाज में जो दोष आये उसकी देन हमारी सनातन संस्कृति कभी नहीं रही ....इस बात को समझ लेना आवश्यक है |
२- इस देश में नारी के सभी रूपों की पूजा का विधान है ...एक भारतीय (मूल हिन्दू) छोटी बच्ची में अपनी बेटी का दर्शन करता है, अपने समतुल्य को बहन, और अपने से बड़ी स्त्री में माँ के रूप का दर्शन करता है | विश्व की अन्य किसी मानव निर्मित धर्म में ऐसा नहीं देखने को मिलता है , बाकी सभी जगह नारी केवल भोग की वस्तु भर है | हमें ये समझ लेना होगा की अपने धर्म से विमुख होने का ये परिणाम है की संस्कारों के इस देश की ये दुर्गति हो रही है |
३- मूल भारतीय शिक्षा पद्धति हमेशा शोधात्मक रही है जिसमे अपनी बुद्धि के अनुसार व्यक्ति समाज का अंग होता था | लेकिन हम आज केवल जबरजस्ती की पढाई जिसमे पैसा कमाना ही मूल उद्देश्य है ...ग्रहण कर रहे हैं ....यहाँ तक की हमारे वर्तमान शासक नैतिक शिक्षा की जगह यौन शिक्षा दे रहे हैं | हम अपने धर्म से विमुख है इसलिए इसे स्वीकार कर रहे हैं |
४- विदेशी संस्कृतियों के जाल में फंसकर हम अपने मूल हिन्दू धर्म में ही बुराईयाँ ढूंढ़ रहे हैं ....जबकि हमारा काम अपनी हिन्दू संस्कृति में आये विदेशी प्रभाव को दूर करना है जिससे की हम पुन: विश्व के शिक्षक बन सकें |
५- हमें यह समझ लेना होगा की यह राष्ट्र  किसी विदेशी सोच और संस्कृति पर आधारित  राष्ट्र नहीं है ....ये हमारा राष्ट्र है ...हमें इसे खुद सुधारना होगा ...हमें किसी विदेशी मानव निर्मित धोखेबाज और कुकर्मी संस्कृतियों की सीख नहीं चाहिए..........................शुरुआत खुद से करिए ...पुन: हिन्दू बनिए ....सारा विश्व निर्मल हो जायेगा ...और हमारा राष्ट्र पुन: विदेशी मानसिकता से मुक्त होगा ...................
.डॉ. रत्नेश त्रिपाठी 

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