आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

गुरुवार, 5 जून 2014

कैसा पर्यावरण ?
व्यक्तिगत रूप से मै किसी भी दिवस को मनाने का पक्षधर नहीं रहा क्यूंकि बुद्धि के पागल लोग इन दिनों में अपने अंदर के भरे सारे कूड़े कचरे को निकाल देते हैं और इनके चक्कर में करोङो का खेल हो जाता है । मेरी एक सलाह- घर के विशुद्ध हिन्दू संस्कार को पुन : स्थापित करिये फिर इन दिनों की जरुरत ही नहीं होगी। .... तब बहस नहीं समाधान होगा............ डॉ. रत्नेश त्रिपाठी

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सहमत आपकी बात से ..