आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

इतनी दूर तक जगने वाले

इतनी दूर तक जगने वाले
सोने कि तू बात न कर
जीवन तो एक दरिया है पर
डूबने कि तू बात न कर

माना कि गम के बादल हैं
मज़बूरी है बरस रही
एक-एक बूंद कि खातिर
सीप जीवन कि तरस रही
बस तू पर्वत सा बन जा
यूँ बहने कि बात न कर . इतनी दूर.......

सुबह तो फिर भी आती है
पर तू सुबह से पहले कि सोच
बन करके मोती तू चमक
तू सुबह का इंतजार न कर

इतनी दूर तक जगने वाले
सोने कि तू बात न कर

रत्नेश त्रिपाठी

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