आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

अम्मा !

एक कहानी अजीब सी
बहुत सा सवाल लिए
और उत्तर केवल एक, केवल एक?
फिर वह कहानी क्या है? और
उन बहुत सारे प्रश्नों का एक उत्तर क्या है ?
कहानी है परिवार की, हमारे विचार की
आज के समाज के व्यवहार की
कोई किसी से खुश नहीं है
पति पत्नी से नाखुश, स्त्री पुरुष से नाखुश
बेटा बाप से, भाई भाई से, हर रिश्ता दूसरे से
समस्या! सिर्फ अपने बारे में सोचना
नए युग के अनुसार स्वयं के
अधिकारों पर स्वयं की जीवन इच्छा
सब अपने को सर्वश्रेष्ठ मानकर
दूसरों के प्रति लापरवाह हैं !
कारण कुछ भी हो
अहम् ब्रह्मास्मि!
सभी रिश्ते एक दूसरे के अधिकारों की होड़ में
अगड़ पिछड़ रहे हैं, सब अपने
किये की किस्त मांग रहे हैं ,
हम आधुनिकता में सबकुछ भूले बैठे
जीवन को अर्थ की कसौटी पर
व्यर्थ में तौलते जा रहे हैं,
और फिर आधुनिक युग की
अनमोल देन अधिकार व स्वयं इच्छा
का आवरण ओढ़े जा रहे हैं
ये है जीवन की कहानी , अब !
इन सबका एक उत्तर
वह कौन है? जो अधिकार नहीं मांगती
वह कौन है? जो इन्वेस्ट का फायदा नहीं मांगती
वह कौन है? जो स्वयं की इच्छा
व स्वयं ब्रह्मास्मि होते हुए
अहम् ब्रह्मास्मि नहीं कहती
वह कौन है? जो पूरी कहानी लिखती है
किन्तु पारितोषिक नहीं मांगती
वह कौन है जो सृजन की स्थली है ..
लेकिन खुद के लिए स्थान नहीं मांगती
इस कहानी और इन प्रश्नों का बस
एक जबाब है माँ -
माँ और बस माँ
रत्नेश त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

दुनिया मै सभी नराज हो जाये, बेटा कमीना ओर खुद गर्ज हो जाये, लेकिन मां हमेशा हमेशा उस खुदगर्ज बेटे के हक मै ही बोलेगी... चाहे बेटा उसे धक्के मार कर घर से निकाल दे, फ़िर भी मां को कोई शिकायत नही होती. बहुत सुंदर लिखा आप ने

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वह कौन है? जो पूरी कहानी लिखती है
किन्तु पारितोषिक नहीं मांगती
वह कौन है जो सृजन की स्थली है ..
लेकिन खुद के लिए स्थान नहीं मांगती
इस कहानी और इन प्रश्नों का बस
एक जबाब है माँ -
माँ और बस माँ ...

सत्य . केवल सत्य .... सार्थक और शाश्वत लिखा है ......... माँ बस शब्द ही काफ़ी है समझने के लिए .......... बहुत खूब रचना .....