मानवता की धमनी में जब
जाति धर्म का विष बहता हो
छोड़ गरीबों की चिंता
पूंजीवादी पुराण को बाचाता हो
संविधान का अम्बेडकर जब
सडकों पर जूता सिलता हो
आजादी का भगत सिंह जब
कूड़े का जूठा पत्तल चाटता हो
माथे की बिंदी हिंदी ही जब
घर की बनवासिनी सीता हो
इस शासन की कुशासन से
त्राहि त्राहि करती जनता हो
हंसों के आगे जब भारत में
बगुलों का अभिनन्दन होता
राष्ट्रभक्त पाता फाँसी
गद्दारों का वंदन होता
जब धन पशुओं के आगे
सांसद बन जाये कठपुतली
क्यों ना देश का बच्चा-बच्चा
उगले आंधी पानी और बिजली
जब कलम का पुजारी ही
शासन के टुकड़ों का भूखा हो
तब क्यों ना क्रांति की दुन्दुभी बजे
क्यों ना छंदों का एटम बम फूटे
भ्रष्टाचार भाजता लाठी
सुरषा सी बढ़ती मंहगाई
इन्कलाब की स्याही ले
क्यों ना कलम ले अंगडाई
डाकू तो डाकू होता है
दरबार बदलने से क्या होगा
जहाँ लोक ही बिकता हो
उस लोकतंत्र का क्या होगा
लाना है यदि इन्कलाब तो
कलम के गद्दारों को जिन्दा गड़वा दो
शासन परिवर्तन पीछे है
गद्दारों को फाँसी पर चढवा दो।
रत्नेश त्रिपाठी
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19 टिप्पणियां:
राष्ट्रभक्त पाता फाँसी
गद्दारों का वंदन होता
रत्नेश जी आपने इन दो पंक्तियों में भारत की असली समस्या पर हाथ रख दिया।और अगली दो पंक्तियों में समाधान भी बता दिया
लाना है यदि इन्कलाब तो
कलम के गद्दारों को जिन्दा गड़वा दो
बस अब अमल करना है हमें मिलकर
वो कौन हैं जो इस देसभक्ति से ओतप्रोत कबित को पढ़ तो रहे हैं पर टिप्पणी से बच रहे हैं कहीं ये वही तो नहीं
अति सुन्दर...
जय हिंद
वन्दे मातरम्
"क्यों ना देश का बच्चा-बच्चा
उगले आंधी पानी और बिजली"
क्या बात है जी!
जबरदस्त वाली बात है जी ये तो....
जय हिंद!
कुंवर जी,
rongte khade kar diye aapne....
Mindblowing !
बहुत सुंदर बात कही आप ने.....
शासन परिवर्तन पीछे है
गद्दारों को फाँसी पर चढवा दो।
लाना है यदि इन्कलाब तो
कलम के गद्दारों को जिन्दा गड़वा दो
शासन परिवर्तन पीछे है
गद्दारों को फाँसी पर चढवा दो।
gazab ..sampoorn rachna ..prabhaavshali .....bahut khoob
डाकू तो डाकू होता है
दरबार बदलने से क्या होगा
जहाँ लोक ही बिकता हो
उस लोकतंत्र का क्या होगा
भारतीय लोकतन्त्र की तल्ख हकीकत!
लाजवाब रचना!
जय हिन्द्!
देशभक्ति से ओतप्रोत बढ़िया रचना
कविता की भावना तो सुन्दर और देशप्रेम से भरपूर है.
आप सभी का अभिनन्दन!
यही हौसलाफजाई हमें निरंतर सत्य लिखने की प्रेरणा देता है.
रत्नेश
लाजवाब रचना!
मानवता की धमनी में जब
जाति धर्म का विष बहता हो
छोड़ गरीबों की चिंता
पूंजीवादी पुराण को बाचाता हो......जय हिंद .
डाकू तो डाकू होता है
दरबार बदलने से क्या होगा
जहाँ लोक ही बिकता हो
उस लोकतंत्र का क्या होगा .......वन्दे मातरम्
लाना है यदि इन्कलाब तो
कलम के गद्दारों को जिन्दा गड़वा दो
शासन परिवर्तन पीछे है
गद्दारों को फाँसी पर चढवा दो। .....अभिनन्दन
गजब हो भाई जी आप भी।
इतनी आक्रामकता पहली बार पढ़ी।
आपका अभिनंदन..
क्रांतिकारी रचना के लिए।
Sach hai .. paseena bahana hoga .. lahoo dena hoga ... yadi bhaarat maa ka maan rakhna hai ...
BANDEMtRm .
preranaspad kabita hai .
bahut acchha laga.
Jai shriRam
Oajpoorn! Pravahmayee....
Jai Hind!
...बहुत खूब .... बेहतरीन !!!
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