कोई लगता दिल को प्यारा
लेकिन मै बोल ना पाता हूँ
डरता हूँ वह सुन्दर है बहुत
जाने क्या भाव लाये मन में
लेकिन उसको जब देखता हूँ
खुद को मै भूल सा जाता हूँ | (कोई लगता दिल को प्यारा .........
मै देखता हूँ हर रोज उसे
लेकिन कुछ रोज ही होगा ये
जाने फिर कब मै उसे देखूं
यह सोच के मै घबराता हूँ | (कोई लगता दिल को प्यारा ..........
है मुझमे नहीं तन की सुन्दरता
जिसको ये जहाँ बस पूजता है
लेकिन मन की सुन्दरता है
फिर भी मै बोल ना पाता हूँ |(कोई लगता दिल को प्यारा ..........
है प्यार क्या, चाहत है क्या ?
इसकी मुझको कोई चाह नहीं
क्यों लोग पूजा की पद्धति को
कहते प्यार! मै समझ ना पाता हूँ | (कोई लगता दिल को प्यारा ..........
रत्नेश त्रिपाठी
15 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर
@ कहत कबीरा-सुन भई साधो
जय हो !
आपने तो इस रचना पूरी कहानी ही बदल दी |
अति सुन्दर...
बहुत सुन्दर रचना
बोलना भी मत पर रचना सुन्दर है।
सुन्दर गीत!
sundar rachna - shubhkamanayen
बहुत बढ़िया गीत है .
अपने स्वर में भी प्रस्तुत करें.
है मुझमे नहीं तन की सुन्दरता
जिसको ये जहाँ बस पूजता है
लेकिन मन की सुन्दरता है
फिर भी मै बोल ना पाता हूँ ..
अनुपान लिखा है ... मन की सुंदरता ही अचल है ... तन की सुंदरता तो खो जाती है ...
रतनेश जी .. जल्दी करें अब .....
bahut khoob .
sundar rachna.
मै देखता हूँ हर रोज उसे
लेकिन कुछ रोज ही होगा ये
जाने फिर कब मै उसे देखूं
यह सोच के मै घबराता हूँ | ....बहुत सुन्दर रचना
Bahut saral,bhavuk rachna! Manki sundarta hi anindy hai...nity hai..waise to kaha,'husnwale husnka anjaam dekh,Doobte sooraj ko waqte shaam dekh!
सुन्दर गीत. प्रेम दैवी गुण है!
गहरे भावो से परिपूर्ण....
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