गुरुवार, 3 जून 2010
किस्तों में जिंदगी जीते हैं यहाँ लोग
1.
आज के दौर में इन्सान कहाँ खोया है
वह खुद को भूलकर क्यों गहरी नीद सोया है
क्यों उठता नहीं है आज के दौर में वह
शायद बूढ़े शरीर में वह दर्द लिए रोया है
फिर ये आज का नौजवां कहाँ गुम है
कुछ ना पूछो! वह इश्क के बाजार में खोया है.
2.
किस्तों में जिंदगी जीते हैं यहाँ लोग
हर बूंद मैखाने की पीते हैं यहाँ लोग
ये सोचकर की आगे खुशहाल जिंदगी है
हर पल इसी धोखे में जीते हैं यहाँ लोग.
3.
जिसने जनम दिया उसे हम भूल जाते हैं
पाला है जिसने हमको उससे नजर मिलाते हैं
अगर यही है प्यार तो नफ़रत किसे कहें
इस प्यार में ना जाने हम क्या पाते हैं
रत्नेश त्रिपाठी
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10 टिप्पणियां:
ratnesh ji aapki teeno hi rachnaayein lajawaab hain...aur aapki tippaniyan bhi kam nahi hoti...
दिलीप जी
बस आप जैसे लोगों का साथ पकड़ रखा है ......
अगर यही है प्यार तो नफ़रत किसे कहें
जबरदस्त प्रहार
जिसने जनम दिया उसे हम भूल जाते हैं
पाला है जिसने हमको उससे नजर मिलाते हैं
बहुत भावुक रचना आज के समय पर एक सचा प्रहार.धन्यवाद
किस्तों में जिंदगी जीते हैं यहाँ लोग
हर बूंद मैखाने की पीते हैं यहाँ लोग
ये सोचकर की आगे खुशहाल जिंदगी है
हर पल इसी धोखे में जीते हैं यहाँ लोग.
-वाह वाह!! बहुत खूब लिखते हो भाई..आनन्द आ गया.
बहुत बढिया लिखा है !!
sahi he jindhi kisto me bat gai he
बहुत सही जा रहे हो रत्नेश भाई. सभी एक से बढ़कर एक हैं, बधाई हो!
जिसने जनम दिया उसे हम भूल जाते हैं
पाला है जिसने हमको उससे नजर मिलाते हैं ..
ये नया युग है ... परिवर्तन का दौर है ... पर ग़लत दिशा का परिवर्तन है .... अच्छा लिखा है ..
teenon kavitaayein bahut acchi likhin hain aapne..
dhnywaad..
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